कविता

दिलखुश जुगलबंदी-7

एक वैलेंटाइन यह भी

न जाने कहाँ से इक ख्याल आया,
ख़ामोशी से शब्दों को था पिरोया,
बहती हवा में शब्द लहराते चले गए,
दिलखुश जुगलबंदी सृजित करते चले गए.

खामोशी का तरन्नुम कुछ निराला है,
वही समझ सकता है, जो मौन का मतवाला है,
इसी मौन के तरन्नुम ने रच डाले हैं कई तराने,
इन्हीं तरानों ने दिल को खुश कर डाला है.

ख़ामोश शब्द आप तक पहुंच गए
बिना लिफाफे बिना डाकिए के
हवाओं में लहराते जज्बातों को
पढ़ लिया था पैग़ाम भेजा था जिनको

ख़ामोश शब्द अक्सर गंतव्य तक पहुंच ही जाते हैं,
कभी-कभी खुद को पता नहीं चलता, सामने वाले भांप जाते हैं,
इनको लिफाफे या डाकिए की जरूरत नहीं पड़ती,
हवाओं में लहराते जज्बातों को कबूतर ही उड़ा ले जाते हैं.

ये परिंदे भी कमाल की शै हैं
खामोशियों की सिसकियां
सुन लेते हैं
बिन कहे ही फिर
भरते हैं लम्बी उड़ान
जा पहुंचते हैं
ठिकाने पर
रख पैग़ाम अपने परों पर.

इन परिंदों के पर (पंख) भी तो निराले होते हैं,
हमारे पर (लेकिन-किंतु-परंतु) की तरह रुकावट वाले नहीं होते हैं,
एक बार तो 23 साल बाद भी ख़त को मंजिल तक पहुंचा दिया था,
तभी तो उमंग में आकर ‘कबूतर जा-जा-जा’ गाते हैं,
और वेलेंटाइन डे पर पहले प्यार की पहली चिट्ठी पहुंचाते हैं.

परिंदे और उनके पर
दोनों ही निराले हैं
मतवाले हैं
ज़िन्दगी से कभी नहीं
दुःखी होते ये
एक पर ‘ गर
कट भी जाए
तो भी हारते नहीं
उड़ते ही जाते हैं
चाहे लगें 23 साल
इंसान तभी आगे बढ़ता है
जब उसके ‘पर’ काट दिए जाएं
तब शायद
उसके मन का कबूतर भी
कबूतर जा जा जा
वाला बन जाए
और
वेलेंटाइन डे पर
पहले प्यार की
पहली चिट्ठी
मंजिल तक
पहुंचा दे.

तब बोलती खामोशियां भी
मुखर हो जाएंगी
एक वैलेंटाइन यह भी
कहकर गीत गाएंगी.

 

दिलखुश जुगलबंदी- 5 के कामेंट्स में सुदर्शन खन्ना और लीला तिवानी की काव्यमय चैट पर आधारित दिलखुश जुगलबंदी.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

5 thoughts on “दिलखुश जुगलबंदी-7

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    लीला बहन , वैलंटाइन डे पर लिखी जुगलबन्दी बहुत अछि लगी .

  • लीला तिवानी

    रवि भाई,
    कभी-कभी खामोशियां भी आजाब बन जाती हैं,
    मुश्किलों को और बढ़ाने के लिए ताप बन जाती हैं,
    ऐसे में मौन के तरन्नुम को तोड़ना ही बेहतर है,
    तभी मन में कलुष पैदा करती हुई उदासियां भी धुल जाती हैं

    इन कैंचियों से बचना भी जरूरी है,
    वरना ये न मिटने वाला दाग दे जाती हैं.

    सोचते ही रहोगे तो सोचते ही रह जाओगे,
    चलना शुरु करोगे तो रहबर को पा जाओगे.

    खामोशी का तरन्नुम होता ही निराला है,
    जो समझ सके, वह ही असली दिलवाला है.

  • लीला तिवानी

    कभी-कभी खामोशियां भी आजाब बन जाती हैं,
    मुश्किलों को और बढ़ाने के लिए ताप बन जाती हैं,
    ऐसे में मौन के तरन्नुम को तोड़ना ही बेहतर है,
    तभी मन में कलुष पैदा करती हुई उदासियां भी धुल जाती हैं

  • लीला तिवानी

    वैलेंटाइन डे मनाने का यह अंदाज भी निराला है,
    आज तो जिधर देखिए, दिखता हर कोई मतवाला है,
    यह मस्ती जाम की नहीं है, यह तो है बस विशुद्ध प्रेम की,
    इस दिलखुश जुगलबंदी का नाम ही दिल को खुश करने वाला है.

    • रविन्दर सूदन

      आदरणीय दीदी,
      कई घर बदले इस बेघर ने, इस कबूतर को किसी छत पर उतर जाना है ।
      मुझको मत रोक मुझे जाने दे वहीँ पर, जो सबका ठिकाना है ।
      कबूतर खत किस तरह पहुंचाए यार तक, पर कतरने को लगी हैं कैंचियां दीवार तक ।

      तब बोलती खामोशियाँ थी, दिल तो ना खामोश रहा ,
      मैं तो बस खामोश था, पर कहाँ हूँ यह ना होश रहा.
      खामोशी का तरन्नुम कुछ निराला है,
      चुप है वो किस वजह से मालूम नहीं,
      मगर उनका यह अंदाज देखा भाला है ।
      दिल डूब सा जाता है जब वो खामोश रहते हैं,
      पता नहीं उन्होंने दिल में क्या पाला है ।

      मेरे आदि गुरु जी का जन्मदिन, बसंत पंचमी को मनाया,
      ना जाने कहाँ से इक ख्याल आया,
      मेरे सबसे प्यारे को भी कुछ भेजूं,,
      वेलेंटाइन का दिन आया,
      ध्यान में बैठकर उन्हें याद फ़रमाया,
      उनका इक सन्देश ये आया,
      प्यार उसे करो जो सबसे प्यार करता है,
      यही सिखाने, था मैं धरती पर आया ।

      सोच रहा हूँ कुछ लिखूं , लेकिन क्या पैगाम लिखूं,
      उस बिन काटी रात लिखूं , या साथ गुजारी शाम लिखूं ?
      सिर्फ मैं ही क्यों उसे भी जान होना पड़ेगा,
      मुहब्बत की है तो बदनाम होना पड़ेगा,
      ना हिन्दू होना शर्त है ना मुस्लिम होना शर्त है, दिलों पर राज करना है,
      तो पहले इंसान होना पड़ेगा ।

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