फिर सदाबहार काव्यालय-18
हम आतंक के साए में जी रहे हैं
आज हम आतंक के साए में जी रहे हैं
सच पूछो तो पल-पल
आतंक का विष ही पी रहे हैं
घरों में कलह का आतंक
गलियों में छलावे का आतंक
सड़कों पर इज़्ज़त तक लुट जाने का आतंक
नदियों में प्रदूषण का आतंक
सागर में सूनामी-नरगिस
और
जहाज़ों को बंधक बनाने का आतंक
धरती पर भूकंप का
वृक्षों की संख्या कम होने
और
प्लास्टिक के उपयोग से
होने वाली हानियों का आतंक
अंबर से बिजली गिरने से मरने वालों की
बढ़ती संख्या का आतंक
जो कभी सुना नहीं था
आज, रोज़-रोज़ बादल फटने से
मृत्युदर बढ़ने का आतंक
रक्षकों के भक्षक बनने का आतंक
अन्दर आतंक
बाहर आतंक
ऊपर आतंक
नीचे आतंक
सर्दी में ठिठुरने का आतंक
गर्मी में झुलसने का आतंक
वर्षा में बाढ़ का आतंक
वसंत की भनक तक न पड़ने का आतंक
अपनों में आतंक
गैरों में आतंक
दिलों में आतंक
यानी आतंक ही आतंक
सबसे पहले दिलों में आतंक का
मुकाबला करना है
अपने को ईमानदार और मज़बूत बनाकर
मानवता के संकट को हरना है
तभी
आतंकवाद विरोधी दिवस का होगा सदुपयोग
आइए
यह भी करके देखें एक प्रयोग.
लीला तिवानी
मेरा संक्षिप्त परिचय
मुझे बचपन से ही लेखन का शौक है. मैं राजकीय विद्यालय, दिल्ली से रिटायर्ड वरिष्ठ हिंदी अध्यापिका हूं. कविता, कहानी, लघुकथा, उपन्यास आदि लिखती रहती हूं. आजकल ब्लॉगिंग के काम में व्यस्त हूं.
मैं हिंदी-सिंधी-पंजाबी में गीत-कविता-भजन भी लिखती हूं. मेरी सिंधी कविता की एक पुस्तक भारत सरकार द्वारा और दूसरी दिल्ली राज्य सरकार द्वारा प्रकाशित हो चुकी हैं. कविता की एक पुस्तक ”अहसास जिंदा है” तथा भजनों की अनेक पुस्तकें और ई.पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है. इसके अतिरिक्त अन्य साहित्यिक मंचों से भी जुड़ी हुई हूं. एक शोधपत्र दिल्ली सरकार द्वारा और एक भारत सरकार द्वारा पुरस्कृत हो चुके हैं.
मेरे ब्लॉग की वेबसाइट है-
https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/rasleela/
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इस कायराना हमले से सारा देश सकते, गम और गुस्से में.
यह कैसा वैलेंटाइन डे हुआ, 37 जवानों को अपने वैलेंटाइन को छोड़कर मौत को गले लगाना पड़ा. आतंक का यह रौद्र रूप है, जिसने पुलवामा के साथ सारे देश को आतंकित और भयभीत कर दिया. इन सभी शहीद हुए जवानों को हमारी अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि.