आक्रोश (कविता)
घड़ी दो घड़ी आँसू बहाकर
संवेदना प्रकट कर दिये
काश अपनों का दर्द होता तो
पूरी कायनात रो पड़ती
बुद्ध और महावीर की धरती
आँखें मूँदें रो रही
विभत्सता की परकाष्ठा
क्यों जननी जन्मभूमि को मिल रही
क्यों नहीं तेरे हाथ काँपते
तेरी करतूत से सारा भारत रो रहा है
जिंदगी किसी को दे नहीं सकते
फिर मौत का तांडव क्यों कर रहे ?
— आरती राय