ग़ज़ल – शहादत पर…
शहादत पर हमारी तुम सियासत मत करना,
सुनो बदनाम हमारी यह शहादत मत करना।
कड़ी निंदा की जगह घर में घुसकर मारना,
केवल दिखावे की तुम खिलाफत मत करना।
भेजकर देखो औलाद को देश की सीमा पर,
फिर पड़ोसी मुल्क से तुम अदावत मत करना।
जब होगा शहीद तुम्हारे भी जिगर का टुकड़ा,
मोहब्बत करना उनसे तुम नफरत मत करना।
फिर देना हवाला तुम उनके भटके हुए होने का,
और दर्द सहकर तुम भी शिकायत मत करना।
अत्याधुनिक हथियारों को संभाल कर रखना,
उनसे दुश्मनों को मारने की हिम्मत मत करना।
ए साहिब! जो बची हो गैरत तुम में जरा सी भी,
आज के बाद जयचंदों की हिफाज़त मत करना।
अहसास करा दो दुश्मनों को अंजाम बुरा होगा,
झुका दोगे हिंदुस्तान को तुम ये हसरत मत करना।
“सुलक्षणा” भी भर रही है हुंकार उठाकर कलम,
हर कोई चाह रहा है आज कोई रियायत मत करना।
— डॉ सुलक्षणा