लघुकथा- भरोसा
जीवन की दोपहर में पत्नी की मृत्यु से मुझे बुढापे की चिंता होना स्वाभाविक थी। इकलौती सन्तान बेटी के विवाह के पश्चात् सुरक्षा के लिए ओल्ड एज होम की सूचना एकत्रित कर रहा था। एक दिन डाक में एक सूचना बेटी ने देखकर मुझसे कारण पूछा। मेरा उत्तर सुनकर नाराज हो गई। बोली — मुझ पर भरोसा नहीं है क्या ? मेरे साथ ही रहेंगे। होने वाले जीवनसाथी से स्पष्ट बात करना मेरा कर्तव्य है। निश्चिंत रहिएगा। मेरे होते हुए ऐसा विचार भी क्यों ? भीगी पलकों से मेरी बेटी सूचना के कागज़ के टुकड़े टुकड़े कर रही थी।
— दिलीप भाटिया