लघुकथा

लघुकथा – वाट्सएप

वाट्सएप पर सुबह सुप्रभात एवं रात्रि में शुभ रात्रि के सन्देशों से बहुत समय नष्ट हो रहा था एवं इनकी कोई सार्थकता महसूस नहीं हो रही थी। एक सन्कल्प लिया सुबह एवं रात्रि में स्मार्ट फोन नहीं देखने का। अब सुबह की सैर प्रार्थना योगाभ्यास प्राणायाम के लिए एवं रात्रि में पुस्तक पढ़ने के लिए समय निकालकर स्वयं को तन मन से अधिक स्वस्थ महसूस कर रहा हूँ। जीवन में एक उत्साह एवं सकारात्मक ऊर्जा पाकर सार्थकता मिल रही है एवं वाट्सएप का नशा तो स्वतः ही दूर हो ही गया है।

— दिलीप भाटिया

*दिलीप भाटिया

जन्म 26 दिसम्बर 1947 इंजीनियरिंग में डिप्लोमा और डिग्री, 38 वर्ष परमाणु ऊर्जा विभाग में सेवा, अवकाश प्राप्त वैज्ञानिक अधिकारी