लघुकथा

वचन

सौंदर्या आज बहुत खुश थी. अभी कल ही तो उसकी सगाई की बात लगभग पक्की हुई थी. लड़का ऑस्ट्रेलिया में रहता है. शादी के बाद उसे भी सिडनी जाकर रहना होगा. कैसा होगा उसका नया जीवन, नया देश, नया परिवार. अब तक वह केवल बेटी ही थी. वहां उसे पत्नी, बहू, भाभी आदि न जाने कितने रिश्ते निभाने होंगे. कैसे निभाएगी वह. तभी उसने मोबाइल में एक सुविचार पढ़ा-
”रिश्तों की ही दुनिया में अक्सर ऐसा होता है,
दिल से इन्हें निभाने वाला रोता है,
झुकना पड़े तो झुक जाना अपनों के लिए क्योंकि,
हर रिश्ता एक नाज़ुक समझौता होता है.”
क्या उसे भी हर रिश्ते के साथ समझौता करना पड़ेगा? क्या पति के साथ भी सिर्फ समझौता कारगर होगा! तभी उसे अपनी ऑस्ट्रेलिया की पिछली यात्रा की स्मृति हो आई.
अपनी पड़ोसिन एलेक्सा की शादी में वह गई थी. शादी से पहले ही वचन ले लिए गए थे.
एलेक्सा खुद भी ऑफिस में नौकरी करती थी और अच्छे पद पर नियुक्त थी. हर एक की भांति उसे भी ऑस्ट्रेलिया में अनुशासन में रहना जरूरी था. कल को पति कह दे कि मुझे अपनी ऑफिस में जरूरी काम है, तुम घर संभालकर जाना, ऐसा तो नहीं चलेगा न!
उसने पहले ही भावी पति से बात कर ली थी-
”जैसे तुम्हारे लिए ऑफिस में समय पर पहुंचना जरूरी होगा, मेरे लिए भी जरूरी होगा. मैं तुम्हारी जरूरत का ध्यान रखूंगी, तुम मेरी जरूरत का ध्यान रखोगे?”
”बिलकुल, इसमें कोई संदेह नहीं है.”
”मैं तुम्हारे माता-पिता, भाई-बहिन को पूरी इज्जत दूंगी और उनकी हर जरूरत का ध्यान रखूंगी, क्या तुम भी मेरे रिश्तेदारों के साथ ऐसा ही व्यवहार कर सकोगे?”
”पक्का, बिलकुल पक्का.”
”मैं हरसंभव तुम्हारी इच्छा का ध्यान रखूंगी, क्या तुम भी मेरी इच्छा का मान रख सकोगे?
”क्यों नहीं, तुम्हारे और मेरे में क्या फर्क है?”
”अभी भी समय है सोच लो, कल को मुकर मत जाना. ऐसा न हो कि तुम पहले घर आकर बैठे रहो, कि मैं आऊंगी और तुम्हें कॉफी पिलाऊंगी, फिर खाना बनाऊंगी, तुम्हें भी घर में कंधे-से-कंधा मिलाकर मेरे साथ काम करना होगा. ये सब बातें अभी से तय हो जानी चाहिएं, आखिरकार मैं भी नौकरी वाली हूं.”
पति के वचन देने पर ही उसने शादी के लिए रजामंदी दी थी. जब तक सौंदर्या ऑस्ट्रेलिया में रही, एलेक्सा से उसकी बात होती रही. वह बताती थी, कि पति बाकायदा उसे बराबरी का दर्जा देता था और कोई भेदभाव नहीं होता था. उसकी शादी में ही तरुण से उसकी मुलाकात हुई थी, अब उससे शादी की बात चल रही है.
”सौंदर्या को भी तो सिडनी जाकर नौकरी ही करनी पड़ेगी, उसे भी तो वहां के कड़े अनुशासन का पालन करना पड़ेगा. शादी तो भारत में ही होनी है, यहां तो पंडित जी सात फेरों के साथ सात वचन भरवाएंगे, जिनमें सिर्फ नारी के समझौते की ही बात होगी, फिर उसके कड़े अनुशासन का क्या होगा?” सौंदर्या सोच रही थी.
रिश्ता पक्का होने से पूर्व उसने तरुण से खुली बात करने का मन बना लिया था. लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

3 thoughts on “वचन

  • रविन्दर सूदन

    आदरणीय दीदी, सोंदर्या ने पति से तो वचन ले लिया पर ऐसा ना हो, पत्नी : खाने
    में क्या बनाऊँ ?पति :: कुछ भी बना लो — वैसे क्या बनाओगी ? पत्नी : जो आप
    कहो । पति :: दाल चावल बना लो ।पत्नी : सुबह तो खाए थे । पति :: रोटी सब्ज़ी
    बना लो । पत्नी : बच्चे नहीं खाएँगे । पति :: छोले पूरी बना लो पत्नी : मुझे फ्राइड
    चीज़ों से हैवी हो जाता है । पति :: अंडा भुर्जी बना लो । पत्नी : आज मंगलवार है ।
    पति :: पराँठे. पत्नी : रात को ? पति :: होटल से मंगवा लेते हैं । पत्नी : रोज़ रोज़
    बाहर का खाना नहीं खाया जाता । पति :: कढ़ी चावल? पत्नी : दही नहीं है पति ::
    इडली साम्भर ? पत्नी : टाइम लगेगा पहले बताना था न ! पति :: एक काम करो मैगी
    बना लो. पत्नी : उससे पेट नहीं भरता । पति :: पास्ता बना लो ।पत्नी : उससे लूज़
    मोशन नहीं हो जायेंगे ? पति :: भिन्डी फ्राई और रोटी बना लो पत्नी : यार भिन्डी को
    काटने में तो बहुत टाइम लगता है । पति :: फ्रूट सलाद ही खा लेते है । पत्नी : रात को
    भूख लगेगी । पति :: बेक्ड वेजिटेबल बना लो । पत्नी : उफ़ माइक्रोवेव को भी अभी ही
    ख़राब होना था ।पति :: खिचड़ी ही बना दो । पत्नी :: कुकर धुला हुआ नहीं है ।
    पति :: फिर क्या बनाओगी ?पत्नी : जो आप कहें !!

    • लीला तिवानी

      प्रिय ब्लॉगर रविंदर भाई जी, यानी कि फिर चुहिया की चुहिया! ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.

  • लीला तिवानी

    समय के साथ सबको बदलना होता है. कोई न बदल सके, तो उसको बदलने के लिए तैयार करना होता है. नारी पहले अपने मन को तैयार करे, तभी पुरुष को जमाने के साथ चलने के लिए तैयार कर सकेगी. ऑस्ट्रेलिया में न तो हाजिरी लगती है, न ही कोई देर से आने के लिए पूछता है. बस, आपका कंप्यूटर ही बता देता है, को आपने कब लॉग ऑन किया है. उसी हिसाब से आपको शाम को ऑफिस छोड़ना होगा, हो सकता है तब आपको पब्लिक ट्रांसपोर्ट के साथ ही बहुत-सा समझौता करना पड़े.

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