कविता

अब घाटी नहीं कराची तक…

बार बार ललकार रहा, पहरेदारों को मार रहा
क्यों जवाब नहीं उसको देते,जो बांछे अपनी संवार रहा।
बार बार ललकार रहा …………..

क्यों जाया आंसू हो जाते, क्यों करूणक्रंदन भूले हो
अब वक्त नहीं समझाने का, तुम मौत के झूले झूले हो
वो भूत नहीं हैं बातों के, सदियों से वो गंवार रहा
बार बार ललकार रहा …………..

क्या हम इतने निर्बल हैं, हर कोई हमें धकेलेगा
क्या हम इतने कायर हैं, हर कोई हमसे खेलेगा
क्या झूठी वीरों की गाथा, गाता यह संसार रहा
बार बार ललकार रहा …………..

क्यों बात नहीं खुलकर होती, क्यों आर पार से डरते हो
अब मर्दों वाली बात करो, क्यों छुपकर आंहेे भरते हो
माना की कुर्सी प्याारी है, पर देश भी कुछ पुकार रहा
बार बार ललकार रहा …………..

अब घाटी नही कराची तक, हर दर पर तिरंगा लहराये
जो आंशू देता आया उस पर, संकट के बादल गहरायें
घुस कर फन कुचल डालो, बिल से जो फुफकार रहा
बार बार ललकार रहा …………..

अब सारी हदे पार हुई, आजाद करो उन शेरों कों
जो भूल चुके वो याद करें, गिन लें लाश के ढेरों को
पर्दा उठाओ शुरू करो, अब किसका इंतजार रहा
बार बार ललकार रहा …………..

– राजकुमार तिवारी ’’राज‘‘

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782