ग़ज़ल
प्रेम इजहार में तकरार जरूरी तो नहीं
आपसी मेल में मनुहार जरूरी तो नहीं |
डूबना ही था’ तुझे डूबते’ इन आंखों में
डूबने धार का मझधार जरूरी तो नहीं |
बाँह के घेरे’ में’ जब बंद हो’ जाती आंखें
प्रेमी’ के प्यार का’ इकरार जरूरी तो नहीं |
तू मिली मुझको’ मेरी जीस्त महक तो गई’ है
फिर बनेगी गुले’ गुलजार जरूरी तो नहीं |
खूबसूरत जो’ है’ उनका मैं’ दिवाना तो हूँ
किंतु सबका सदा दीदार जरूरी तो नहीं |
जनता को अब नहीं विश्वास दगाबाजों पर
इक दफा फिर वही सरकार जरूरी तो नहीं |
हम मिले हैं कभी पहले भी नहीं भूला हूँ मैं
मिलने’के वास्ते’ इकरार जरूरी तो नहीं |
माना’ संसार में’ दुश्मन है बहुत दोस्त नहीं
प्यार पाने कोई पुरखार जरूरी तो नहीं |
मयकशी के लिए’ आँखें तेरी काफी है प्रिय
जाम का जाम से’ तकरार जरूरी तो नहीं |
कौन देखा है’ खुदा को ? नहीं’ दीदार कभी
हो अभी कुछ भी’ चमत्कार जरूरी तो नहीं |
कालीपद ‘प्रसाद’