कुंडलिया
चादर ओढ़े सो रहा, कुदरत का खलिहान।
सूरज चंदा से कहे, ठिठुरा सकल जहान।।
ठिठुरा सकल जहान, गिरी है बर्फ चमन में।
घाटी की पहचान, खलल मत डाल अमन में।।
कह गौतम कविराय, करो ऋतुओं का आदर।
शीत गर्म बरसात, सभी के घर में चादर।।
— महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी