जयचंदो का दमन करो
अगर राष्ट्र हित सोच रहे हो, जयचंदों का दमन करो ।
छोड़ो पंथ अहिंसा का अब ,धर्मयुद्ध का चयन करो ।
यह शिशुपाल पड़ोसी है जो, गाली पर गाली देता है।
करता है बस घात पीठ पर ,यह वादे खाली देता है ।
उगा रहा आतंक की फसल ,कई बार खुद भी झेला है,
जब मेरे आँसू झरते है,तब तब यह ताली देता है ।
हे मुरलीधर चक्र उठाओ, इस पापी का हनन करो ।
छोड़ो पंथ अहिंसा का…………………………..
कुछ भीतर के ही भेदी है, जो भारत को घाव दे रहे।
कुछ नेता आतंकवाद का पक्ष ले रहे , छाँव दे रहे ।
कुछ भारत की खाते हैं,पर पाकपरस्ती मे जीते हैं,
यही लोग उन हत्यारों को जन्म दे रहे,ठाँव दे रहे ।
ये संबल आतंकवाद के,पहले इनका शमन करो ।
छोड़ो पंथ अहिंसा…………………..
उसपे दया दिखाओ ,जो मानवता की बातें करता हो।
उस दानव को क्षमादान क्या?जो केवल जीवन हरता हो।
डसते हैं भारत को ये, अब इनका शीश कुचलना होगा!
उसको दूध पिलाना छोड़ो, जो भुजंग हमको डसता हो।
हे चामुंडा पुत्रों ! रिपु के शोणित से आचमन करो ।
छोड़ो पंथ अहिंसा…………………
————- ——–डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी
आकस्मिक चिकित्साधिकारी
स्वरूप रानी नेहरू चिकित्सालय ,
प्रयागराज