ग़ज़ल
जाने कितने सवाल रखता है।
खूब सिक्के उछाल रखता है।
यार मतलब से भरी दुनिया में,
कौन किसका ख़्याल रखता है।
जो उठाकर के आंख देखे हमें,
कौन इतनी मज़ाल रखता है।
वक्त भी ये बड़ा शिकारी है,
बंद मुट्ठी में जाल रखता है।
तुम सहेजो खूब दौलत को,
‘जय’तो रिश्ते संभाल रखता है।
— जयकृष्ण चांडक ‘जय’