ग़ज़ल
सही बात कहना हिमाकत नहीं है।
हक़ीक़त बयानी बगावत नहीं है।
सभी माल मत्ता मेरे नाम है पर,
उसे छू सकूँ ये इजाजत नहीं है।
नबी पर यक़ीं है ख़ुदा पर भरोसा,
कहींकुछ किसीसे शिक़ायत नहीं है।
है बेकार आना जहां में हमारा,
वतन से जो अपने मुहब्बत नहीं है।
इबादत का तेरी नहीं फायदा कुछ,
ख़ुदा से नबी से जो उल्फत नहीं है।
नफा और नुकसान मत रोज़ जोड़ो,
हुक़ूमत चलाना तिजारत नहीं है।
वज़ारत तोबदली हुआ कुछ नहींपर,
सवारी की अबभी हिफाज़त नहीं है।
खुली जो वकालत करे नफरतों की,
कहीं से भी अच्छी सियासत नहीं है।
हुकूमतबदलना हैफितरी अमल इक,
किसी की ये ज़ाती रियासत नहीं है।
पुराने को दीं गालियाँ खूब कल तक,
करो कुछ नया इतनी हिम्मत नहीं है।
— हमीद कानपुरी