गीत (लावणी छंद)
अंध भाव व्यापक समाज में ,जीभ है चाटुकारी में ।
झूठ ,दिखावा औ फरेब ही ,बस है दुनियादारी में ।
कोर्ट ,कचहरी पुलिस महकमें ,चलते सभी सबूतों पर ।
बड़े बड़े पद पा सकते हैं ,रिश्वत के बल बूतों पर ।
करते हैं उत्थान की बातें ,लिप्त हुए मक्कारी में।
झूठ ,दिखावा औ फरेब ही ,बस है दुनियादारी में ।
स्वयं की कुंठा और कुरीति ,छिपा रहे हैं पर्दे में ।
बहन बेटियों की इज्जत को ,उड़ा धूल अरु गर्दे में ।
न्याय बाँध नैनों पर पट्टी ,बैठा है लाचारी में ।
झूठ ,दिखावा औ फरेब ही ,बस है दुनियादारी में ।
धरती सबकी अम्बर सबका ,राग द्वेष फिर फैला क्यों ।
धोते धोते पाप मनुज के ,गंगा का जल मैला क्यों ।
जग के तुम ही खेवनहारे ,रहो न इस हुशियारी में ।
झूठ ,दिखावा औ फरेब ही ,बस है दुनियादारी में ।
— रीना गोयल ( हरियाणा)