ग़ज़ल – मात
अभी बाकी है बात आ जाओ ,
ढल न जाए ये रात आ जाओ ।
जल रही है शमा तेरी ख़़ातिर ,
और उसपे ये घात आ जाओ ।
कहीं बन जाए न ये दर्द फ़ुगां ,
न चलाओं ये कात आ जाओ ।
दिलके ज़ख्मों के साथमें कैसे ,
गुज़रेगी ये हयात आ जाओ ।
सुर्ख होठों पे सजे शब़नम की ,
हो न जाए यूं मात आ जाओ ।
— पुष्पा ” स्वाती “