गज़ल
दामन तेरा अश्कों से भिगोया नहीं गया
रोने का मन तो था मगर रोया नहीं गया
आँखों के समंदर में तैरते रहे गुहर
एहसास को लफ्ज़ों में पिरोया नहीं गया
क्या कह दिया न जाने तुमने मेरे कानों में
पूरी शब पहली दफा सोया नहीं गया
उगेंगे साएदार शजर कैसे राहों में
एक पौधा हमसे आजतक बोया नहीं गया
हर वक्त मेरे साथ रहते हैं तेरे ख्याल
तू ज़िंदगी से जा के भी गोया नहीं गया
— भरत मल्होत्रा