विजय गाना गाओ
विजय गान गाओ रे सब मिल
बाग में पुष्प हंसे रे खिल खिल
आयो रे मां का लाड़ला अपने घर
स्वागत में बुंदे बरसाए अंबर।
पुलकित हो नाच उठी दिशा दिशा
अद्भुत रोमांचक आह्लादित निशा
खुशी का रहा नहीं कोई ओर छोर
मादकता भरी आई सुहानी भोर।
कोयल ने छेड़ी अपन मीठी तान
भंवरें गाए बागों में गुनगुन गान
स्वादिष्ट हो गई मधु कहे मधुकर
होकर आनंदित डोले इधर-उधर।
आज ना माने मन कोई बंधन
आओ रे सखी नाचे हो के मगन
थिरके पैर ढोलक की थाप पर
गूंजे विजय स्वर चारों ओर मुखर।
विजयी मुस्कान खिली मां के मुख पर
आया शुरवीर सकुशल घर लौट कर
दिया अपने अदम्य साहस का परिचय
लेकर मन में अटल अडिग निश्चय।
पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।