गीत/नवगीत

एक क़लम जो …

एक क़लम जो हरी धूप से ,
घास चुराया करती थी !
सतरंगी शब्दों को बुनकर,
मेघधनुष में ढल जाया करती थी !

दिन ढले पपीहे की टेर बनकर,
मधु गीत सुनाया करती थी ।
या कभी बिछुड़ी प्रेयसी का,
प्रेम पात्र बन जाया करती थी !!

एक क़लम….

नीरज सचान

Asstt Engineer BHEL Jhansi. Mo.: 9200012777 email [email protected]