बरखा और बसंत !
पीले पीले फूल खिले,
था चारों ओर बसंत ।
जैसे पीताम्बर ओढ़,
घूम रहा हो संत !!
किंतु बरखा और तूफ़ानो ने मिल,
छीन लिए प्राण उपवन के ।
हो जैसे कोई साथी छूटा,
बिखर गए हों रंग जीवन के ।।
नीरज सचान ।
पीले पीले फूल खिले,
था चारों ओर बसंत ।
जैसे पीताम्बर ओढ़,
घूम रहा हो संत !!
किंतु बरखा और तूफ़ानो ने मिल,
छीन लिए प्राण उपवन के ।
हो जैसे कोई साथी छूटा,
बिखर गए हों रंग जीवन के ।।
नीरज सचान ।