कविता

मौसम है अनुरक्त सा…

मौसम है अनुरक्त सा,
काली घटाएँ छायी हैं ।
बारिशें शायद यहाँ ,
फिर से लौट आयी हैं।।

मिटा चुका था मैं,
जिन गुज़िश्ता यादों को।
आज बन के बूँदे ,
मेरी आँखों में उतर आयी हैं।।

नीरज सचान

नीरज सचान

Asstt Engineer BHEL Jhansi. Mo.: 9200012777 email [email protected]