गीत/नवगीत

हर तो सोना ! हर रोज़ जग जाना !

हर रोज़ सोना, हर रोज़ जाग जाना
दिन दोपहरी सिर्फ़ रोटी को भागना ।
है पता कि ज़िंदगी में मयस्सर कुछ भी नही,
बहुत ही दुष्कर है छद्म मोह को त्याग पाना ।।

खो जाता है नूर , एक दिन तारीकियों में,
शाखें भी छोड़ जाती है , साथ सूखे सज़र का ।
जितनी अनजान है मौत, उतनी ये ज़िंदगी भी,
फिर भी कितना मुश्किल है ख़ुद को समझा पाना ।।

नीरज सचान

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