ग़ज़ल
*ग़ज़ल*
आज लौटकर मिलने मुझसे मेरा यार आया है
शायद फिर से जीवन में उसके अंध्यार आया है
बचकर रहना अबकी बार चुनाव के मौसम में
मीठी बातों से लुभाने तुम्हें रंगासियार आया है
बहुत प्यार करता है मुझसे मेरा पड़ोसी
मुझे यह समझाने लेकर वो हथियार आया है
गले मिलकर गले पड़ना चाहता है दुश्मन
लगता है अबकी बार बनके होशियार आया है
मेरे मुल्क की और मेरी आदतें भी हैं एक जैसी
मुझे भी फिर से उसी बेवफा पर प्यार आया है
:- आलोक कौशिक