बापू तूने अगर
न बांधे होते पंख मेरे
तो मैं भी आज
खुले आसमान में उड़ती
खिलखिलाती किलकारियां भरती
सुदूर पहाड़ी पर
अपना घरौंदा बनाती
अक्षर-अक्षर जोड़कर
अपने हिस्से का आकाश ढूंढती
शब्दों से लोगों को छूने का
प्रयत्न करती
अपने दाने की तलाश में
खुशियों से भरी
एक डाली से दूसरी पर
छलांग लगाती
सखि सहेलियों संग चहचहाती
अपने भाग्य पर इठलाती
तेरे लिए दाना चुन कर लाती
तेरे झुके कंधों को
मजबूती से सहारा देती
अब न बांधना तू
छोटी के पंख बापू
भरने देना जी भर उड़ान
खुले आसमान की
कलम के सहारे वो
नीला आकाश चूमेगी
वर्दी पहन फौजियों की
दुश्मनों से रक्षा कर माँ की
तन-मन-धन न्यौछावर करेगी।
— निशा नंदिनी भारतीय