गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

बह्र 1222 1222 1222 1222

हँसाने के लिए सबको हजारों दुख उठाती है
यही औरत जमींपर एक जन्नत भी बनाती है
मुझे जीवन के सब दिन आज तक उसने दिखाए हैं,
बिताये साल बिन उसके मेरे खाबों में आती है।
जब चिंता में घिरा था वो परेशां थी तकलीफों से,
नमी उसकी निगाहों में मुझे मीठा बुलाती है।
न खाती थी न पीती थी निहारे बस मुझे इकटक,
मेरी आँखें तरसती हैं मुझे इतना लुभाती है।
बड़े बच्चे हुए उसके वो फूली ना समाती थी,
बहुत था गर्व उसको भी चमक चेहरे पे आती है।
बहुत चाहा बहुत सोचा नहीं कुछ खास कर पाया,
कमी ख़लती सदा उसकी मेरे लमहे चुराती है।
खुदा माँ नूर बरसे है यहीं जन्नत दिखाती है,
नहीं ये आदमी होता वही सब कुछ सिखाती है।

रेखा मोहन

*रेखा मोहन

रेखा मोहन एक सर्वगुण सम्पन्न लेखिका हैं | रेखा मोहन का जन्म तारीख ७ अक्टूबर को पिता श्री सोम प्रकाश और माता श्रीमती कृष्णा चोपड़ा के घर हुआ| रेखा मोहन की शैक्षिक योग्यताओं में एम.ऐ. हिन्दी, एम.ऐ. पंजाबी, इंग्लिश इलीकटीव, बी.एड., डिप्लोमा उर्दू और ओप्शन संस्कृत सम्मिलित हैं| उनके पति श्री योगीन्द्र मोहन लेखन–कला में पूर्ण सहयोग देते हैं| उनको पटियाला गौरव, बेस्ट टीचर, सामाजिक क्षेत्र में बेस्ट सर्विस अवार्ड से सम्मानित किया जा चूका है| रेखा मोहन की लिखी रचनाएँ बहुत से समाचार-पत्रों और मैगज़ीनों में प्रकाशित होती रहती हैं| Address: E-201, Type III Behind Harpal Tiwana Auditorium Model Town, PATIALA ईमेल [email protected]