मुनासिब है नहीं
बेवजह मिलना मुनासिब है नही।
संग संग चलना मुनासिब है नहीं।।
दोस्ती का दौर वो कुछ और था,
अब गले मिलना मुनासिब है नहीं।
मोम बन कर आ ज़रा खुद भी जलें,
औरों से जलना मुनासिब है नहीं।
बूँद है तू प्यास लोगों की बुझा,
धूल में मिलना मुनासिब है नहीं।।
रात होने में अभी कुछ वक्त है,
साँझ से ढलना मुनासिब है नहीं।।
आदमी है आदमी की चाल चल,
वक्त सा चलना मुनासिब है नहीं।।
रंजिशें तो यार बाहर ही भली,
दिल में ये पलना मुनासिब है नहीं।।
आस्तीनों पर ‘लहर’ रखना नज़र,
साँपों का पलना मुनासिब है नहीं।।