पांच साल की बधाई; गुरमैल भाई
प्रिय गुरमैल भाई जी,
सादर प्रणाम,
परमपिता परमात्मा की असीम अनुकम्पा से यहां हम सब कुशलपूर्वक है. आशा है वहां आप सब भी कुशलपूर्वक होंगे. गुरमैल भाई, बहुत-बहुत बधाई.
आप पूछेंगे किस बात की बधाई. भाई, आज आपको हमारे ब्लॉग पर आए पूरे पांच साल हो गए हैं. लगातार पांच साल एक ही ब्लॉग पर जमे रहना आपके साहस का परिचायक है. हमें बहुत अच्छी तरह याद है कई बार आपने कहा था- ”मैं तो अंधेरी कोठरी में बंद था, आपने मुझे उजाला दिखाया.” इस उजाले की बात बाद में, पहले बात ‘आज का श्रवणकुमार’ की.
‘आज का श्रवणकुमार’ ही हमारा वह सबसे पहला ब्लॉग है, जिस पर आपके सबसे पहले ‘कलम दर्शन’ हुए थे. ‘कलम दर्शन’ शब्द आपका ही गढ़ा हुआ है. फिर क्या था, इस ‘कलम दर्शन’ के बाद आप हमारे ब्लॉग पर आसन जमाकर बैठ गए. यह बात भी आप कई बार कह चुके हैं. यह आसन जमाना ही हमारे लिए तो सुखदायक और लाभदायक हुआ ही, आपके लेखक बनने का बहाना भी बन गया. उसके बाद आपने मुड़कर पीछे नहीं देखा. आपको कविता में दिलचस्पी नहीं थी आपने बहुत सुंदर कविताएं लिखीं, आपको क्षणिका के बारे में कोई ज्ञान नहीं था, आपने हमसे क्षणिका पर ब्लॉग लिखवाया आप क्षणिकाएं भी लिखने लगे. आपको हाइकु के बारे में कुछ भी पता नहीं था आपने बहुत सटीक व सार्थक हाइकु लिखे. आपके हाइकु के कुछ नायाब उदाहरण-
1.सच्चा है ज्ञान
भूत-भविष्य से अच्छा
है वर्तमान.
-गुरमैल भमरा
2.प्रेम ही प्रेम
मिला है सब से ही
रब की देन.
-गुरमैल भमरा
3.महान काम
दान करे जो आंखें
उसे सलाम.
-गुरमैल भमरा
4.चुप में सुख
बहुत बोला था जब
मिले थे दुःख.
-गुरमैल भमरा
इन पर ब्लॉगर भाई सूर्यभान भान की टिप्पणी थी-
सभी के सभी हाइकु लाजबाब है,। जो गुरुमेल भाई जी की तीव्र अन्तर्दृष्टि के परिचायक है । वास्तव में आदरणीय गुरुमेल भाई जी हाइकु के महारथी हैं|
आज हमारे ब्लॉग पर आपकी बहुत-सी नायाब रचनाएं सुसज्जित हैं और जय विजय पर आप 268 रचनाएं लिख चुके हैं. आप रेडियो के भी चहेते कलाकार व कथाकार के रूप में सूरज की तरह चमक-दमक रहे हैं. यह सब आपकी लगन, जुनून व साहस का परिचायक है.
आजकल आपके पास अपना ब्लॉग नहीं पहुंच रहा, फिर भी आप मेल के माध्यम से हमारे साथ जुड़े हुए हमारे दिलों पर राज कर रहे हैं.
हम उजाले की बात भूले नहीं हैं. लेखन का यह उजाला आपकी जिंदगी में तो आया ही, हम भी लगातार इससे प्रकाशित होते रहे हैं. आज बस हम इतना ही कहेंगे, बाकी बात इंद्रेश भाई, सुदर्शन भाई, रविंदर भाई और प्रकाश मौसम भाई कह रहे हैं.
इंद्रेश उनियाल
आदरणीय लीला बहन गुरमेल जी के विषय में आपसे काफी कुछ जाना था। उनकी एक टिप्पणी मुझे बहुत ही ज्यादा पसंद आई।
”लीला बहिन,सच बोलूँ तो, कविता में मुझे इतनी दिलचस्पी नहीं है और यह भी सच है कि मुझे साधारण हिन्दी आती है, मुश्किल लफ्ज़ समझने में असमर्थ हूँ लेकिन आप की कविता जो, कबूतरों के बारे में लिखी है बहुत अच्छी लगी. ज़्यादा मैने पंजाबी पढ़ी है. आप की कविता मुझे बहुत अच्छी लगी शायद इस का कारण यह हो कि, मैं गाय-भैंस को अपने हाथों से चारा खिलाया करता था. उन को सर्दी में उन के कमरे में ले जाया करता था और देखता था कि कहीं से हवा अंदर न जा सके जिस से वे सर्दी महसूस करे. दो कुत्ते भी थे जैक और टौमी जिन को, दूध पिलाया करता था. जब कोई गाय-भैंस मर जाती थी और उन की लाशों को ले जाने वाले ले जाने लगते थे तो, रोया करता था. किसान का बेटा होने के नाते जानवरों से मुहब्ब्त की है. उन के साथ बातें की हैं. आप हैरान होंगी कि एक दफा मैं छकड़ा लिये जा रहा था जिस को, दो बल्द खींच रहे थे. आगे कीचड़ आ गया और एक बल्द कीचड़ को देखकर वहीं बैठ गया. दूसरे बल्द ने उसकी ओर गुस्से से देखा. बल्द उठ खड़ा हुआ मगर, दौड़ गया. दूसरा बल्द अकेला ही छकड़े को घर तक ले आया. ऐसी और भी यादें हैं. अगर जानवरों को प्यार किया जाये तो वह बहुत प्यार देते हैं. सिर्फ उन से लगाव की ज़रूरत हैं. जानवर बोल नहीं सकते या हम उन की जवान समझ नहीं सकते, उन के सीने में भी दिल होता है. अक्सर डाक्यूमैन्टरी देखा करता हूँ और पंछियों को अपने बच्चों के मुंह में खाना डालते हुए देखता हूँ तो, हैरान होता हूँ माँ की ममता देख कर. जब बच्चे अपनी चोंच ऊपर उठाते हैं और उन की माँ उन को फीड करती है तो इस कुदरत के खेल पर आनंदित हो उठता हूँ. आप की कविता ने यादें ताज़ा करा दीं.
यह टिप्पणी उनके उदार हृदय और प्रकृति के प्रति प्रेम की परिचायक है।
इंद्रेश उनियाल
सुदर्शन खन्ना
गुरु से मेल खाता व्यक्तित्व … गुरमैल … निस्संदेह … सरदार … लौह पुरुष … क्योंकि जीवन की हर मुश्किल घड़ी में फौलाद की दीवार बने परम आदरणीय श्री गुरमैल सिंह भमरा जीवन के समुन्दर में न जाने कितनी भंवरों का सामना कर चुके हैं। आज भी जिस साहस और स्वाभिमान से वे जी रहे हैं वह सभी के लिये अनुकरणीय है विशेषकर उन लोगों के लिए जो जीवन से हार मानने को तैयार बैठे हैं या हार मान चुके हैं। इक़बाल के लफ़्ज़ों में – हज़ारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पे रोती है, बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा। गुरमैल जी कोहिनूर हैं … हिन्दुस्तान के कोहिनूर … जो जहां भी होता है अपनी चमक से अंधेरे को दूर कर देता है। गुरमैल जी इतने बरसों से इन्सानियत के मन में छाये अंधेरों को अपनी रोशनी से मिटाने में कामयाब रहे हैं और आज भी इस हीरे की चमक कम नहीं हुई है बल्कि पहले से भी अधिक हुई है। किस्मत वाले हैं वो जिन्हें इस हीरे का साथ मिला, उसका आभास मिला, उसका स्नेह मिला और मैं भी उनमें से एक हूँ। यूँ तो हीरे की चमक खुद ही हीरे का पता बता देती है पर अगर आदरणीय लीला जी जैसा गाइड मिल जाये तो करामात हो जाती है। सात समुन्दर के उस पार चमकता वह हीरा सात समुन्दर के इस पार मुझे हमेशा ही अपनी चमक का एहसास कराता आया है … यह वह हीरा है जिसकी लिखाई में भी हीरे जड़े शब्द हैं, यूँ तो आम के वृक्ष पर आम ही फलते हैं, सेब के वृक्ष पर सेब पर गुरमैल रूपी वृक्ष पर हर तरह के फल फलते हैं, बहुत ही नायाब, बेमिसाल, विशाल और अनूठा व्यक्तित्व, इन्सानियत से सराबोर, संवेदनाओं का भंडार, ऐसा श्वेत धवल हंस जो दूध का दूध और पानी का पानी कर दे, ऐसा व्यक्तित्व जिसकी भावनाएं कोई नहीं रोक पाया, वाणी में सजती भावनाओं का मार्ग अवरुद्ध हुआ तो शब्दों ने कमान संभाल ली, गुरुमैल जी के जीवन में ऐसे ऐसे अंधेरे आये जो किसी की भी हिम्मत तोड़ दें … पर रात भर का है मेहमां अंधेरा, किसके रोके रुका है सवेरा … गुरमैल जी सवेरा हैं, सूर्य की पहली किरण जो विशाल अंधेरे को चीरते हुए अपनी हिम्मत दिखाती है … यह सवेरा रोज़ ही होता रहे … ऐसी कामना करता हूं परम आदरणीय गुरमैल जी के प्रति, पुनः हार्दिक नमन।
सुदर्शन खन्ना
रविंदर सूदन
आदरणीय गुरमेल जी से मेरी पहली मुलाक़ात नवभारत के ‘अपना ब्लॉग’ पर हुई । उससे कुछ ही समय पहले मैंने नवभारत में समाचारों पर प्रतिक्रिया लिखनी शुरू की थी । सभी लेखकों के ब्लॉग पढ़े । जब आदरणीय लीला तिवानी जी के ब्लॉग पढ़े, तो उसमें आदरणीय गुरमेल जी की प्रतिक्रियाएं, दीदी के प्रति उनका आदर- सम्मान, उसके बाद उनके कुछ अन्य ब्लॉग पढ़े ।
गुरमेल जी के कारण ही मैंने भी आदरणीय लीला बहन जी को गुरमेल जी की ही तरह उनके ब्लॉग पर प्रतिक्रिया लिख दी। यहीं से मेरी लेखन यात्रा शुरू हो गयी । फिर आदरणीय बहन जी ने मेरा उत्साह बढ़ाया मुझे लिखने की प्रेरणा दी, साथ ही में गुरमेल जी के ब्लॉग पर प्रतिक्रिया देने के चलते उनसे एक रिश्ता कायम हो गया ।
जब गुरमेल जी के पुराने ब्लॉग पढ़े तो उनकी बीमारी के बारे भी पता चला । मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था इस कारण गुरमेल जी से आत्मीयता भी बढ़ गयी । जब उनकी फोटो देखी तो मेरे बड़े भाई साहब से काफी मिलती जुलती थी । उन्हें मैं बड़े भाई जैसा ही मानने लगा । आदरणीय दीदी का ब्लॉग “गुरमेल जी एक गौरव-गाथा” और उनके अन्य ब्लॉग पढ़कर मैं तो उनका मुरीद हो गया । स्पाइडर से प्रेरणा लेकर स्पाइडरमैन बनने वाले का सन्देश, उनके जीवन का निचोड़ है, “बहिनों-भाइयों दुख से मत घबराओ.
इंसान वही है जो, जहाँ गिरे वहीं से खुद उठे.
रोने से और तो कुछ मिलेगा नहीं,
हां डिप्रैशन आसानी से मिल जाएगा.”।
मुझे तो उनकी शैली कबीर जी जैसी लगी, बिना लाग लपेट के थोड़े से शब्दों में गहरी से गहरी बात कह जाना। मैंने आदरणीय लीला बहन जी के ब्लॉग संयोग पर संयोग में उनके लिए लिखा था
आदरणीय बहन जी, संयोग पर संयोग, गुरु के मेल और प्रभु की लीला से संभव हुआ. एक सुखद संयोग एक महान लेखक के अंदर समाई प्रतिभा दुनिया के सामने आई. अद्भुत आश्चर्यजनक. प्रभु ऐसी लीलाएं करते रहें.
आदरणीय लीला बहन जी ने भी जवाब में लिखा कि प्रिय ब्लॉगर रविंदर भाई जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. संयोग पर संयोग गुरु के मेल और प्रभु की लीला से संभव हुआ।
आदरणीय गुरमेल जी,
आपको मिस करना रोज की बात हो गयी,
आपको याद करना आदत की बात हो गयी
आपसे दूर रहना किस्मत की बात हो गयी,
मगर इतना समझ ए मेरे प्यारे अजीज
आपको भूल पाना मेरे बस के बाहर की बात हो गयी।
पैगाम तो इक बहाना है,
इरादा तो आपको याद दिलाना है,
आप याद करें या न करें कोई बात नहीं,
पर आपकी याद आती है बस इतना ही हमें आपको बताना है।
रविंदर सूदन
प्रकाश मौसम
जिंदगी की पहली उड़ान का हर लम्हा यादों में बसा होता है। उड़ान को ऊर्जा देती एक छोटी सी चिंगारी भी अनमोल महत्व रखती है।
रचनाकार की यादों में भी बसे होते है उसकी रचनाओं की प्रतिक्रिया स्वरूप मिले… दो शब्द। ये दो शब्द …अवॉर्ड का रूप भी लेते हैं। ये दो शब्द …रचनाकार के हौसले को कम नहीं होने देते। सतत चलती प्रक्रिया में प्रयास भी गतिमान होते रहते हैं।
दो शब्दों की आस में कभी-कभी जब इन्तजार की घड़ियां बढ़ने लगती है, धड़कनें भी अपनी रफ़्तार से विचलित होने लगती हैं।
सकारात्मक या नकारात्मक प्रतिक्रियाओं के गुलदस्ते में कुछ ऐसी प्रतिक्रियाएं भी नज़र आती है जो पहली होने का श्रेय प्राप्त कर लेती हैं।
12 मार्च, महज़ 365 संख्याओं की सीरीज़ को प्रदर्शित करती सिर्फ़ एक तारीख़ नहीं रह जाती।
गुरमेल भाई ने अपने दो शब्दों के माध्यम से पहले ब्लॉग पर पहली बार कामेंट लिखा।
आज वे दूर बसे हैं, अपना ब्लॉग न पहुंचने के बावजूद अभी भी साथ जुड़े हुए हैं।….
गुरु मेल इन शब्दों से ही लगता है जैसे गुरु के विचारों से मेल हो रहा हो और यही मेल जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए मार्ग दिखाते हो, हौसले को कायम रखते हो।
ऊर्जा के प्रभाव से उड़ान ऊँचाई छू रही है…हर कदम जैसे मिल का पत्थर बनता जाता है।
बहुत शुभकामनाएं… दोनों के लिए …
प्रकाश मौसम
चलते-चलते आपकी आत्मकथा के बारे में दो शब्द-
आपने हिम्मत करके अपनी आत्मकथा शुरु की. ईमानदारी और रोचकता से लिखी इस आत्मकथा की हर कड़ी अप्रतिम थी. पाठक शिद्दत से इसकी प्रतीक्षा करते थे. आपने इसकी 201 कड़ियां लिख दीं, जिसकी 9 ई.बुक्स बन गईं. देश-विदेश में ये ई.बुक्स पहुंचीं और जनसाधारण के अनुरोध पर आप फेसबुक पर इसका पंजाबी अनुवाद करके सब तक पहुंचा रहे हैं. अब हिंदी की साहित्यिक पत्रिका में भी इसका प्रकाशन हो रहा है. लेखक बनते ही आपने अपने जीवन का सबसे बड़ा सपना हौसले से पूरा किया.
प्रिय गुरमैल भाई जी, आप ऐसे ही आगे बढ़ते रहिए और हमारा उत्साह बढ़ाते रहिए, आशीर्वाद बरसाते रहिए, यही हम सबकी शुभकामना है.
लीला तिवानी, इंद्रेश उनियाल, सुदर्शन खन्ना, प्रकाश मौसम
आज का श्रवणकुमार लीला तिवानी का ब्लॉग
गुरुमैल गौरव गाथा लिखकर गूगल पर सर्च करें, बहुत कुछ आ जाएगा.
गुरमैल भाई पर ब्लॉग्स लिखकर गूगल पर सर्च करें, बहुत कुछ आ जाएगा.
गुरमैल भाई पर लीला तिवानी के ब्लॉग्स लिखकर गूगल पर सर्च करें, बहुत कुछ आ जाएगा.
जय विजय में गुरमेल भमरा का ब्लॉग
https://jayvijay.co/author/gurmailbhamra/
इंद्रेश उनियाल, सुदर्शन खन्ना, प्रकाश मौसम रवेंदर सूदन और लीला बहन , आप ने मेरे वारे में इतना कुछ लिख दिया, जिस के काबल मैं नहीं हूँ . आप की इस महानता ने मेरा हौसला बुलंद कर दिया . काश , मैं सीधा ब्लॉग पे शिरकत कर सकता लेकिन मेरा ब्लॉग ई यू के देशों में ब्लॉक कर दिया गिया है . फिर भी लीला बहन मुझ को ईमेल कर देती हैं और आप के सनमुख हो जाता हूँ . रवेंदर भाई की रचना , दुखी रहने के उपाय याद करके हंसी आ जाती है . आप सभ सदैव खुश रहें .
विजय भाई , परणाम .पता ही नहीं चला की कब पांच साल पूरे हो गए . सच बताऊँ, लीला बहन के बाद आप ने ही मुझे लिखने की कला सिखलाई . पहली दफा किसी की कोई रचना पत्रिका में छप जाए तो लिखने वाले को कितनी हौसला अफजाई मिलती है, शायद अंदाजा लगाना कठिन है और आप ने युवा सुघोष में मेरी कोई भी रचना बगैर किसी हिच्क्चाह्ट से पब्लिश कर दी हालाँकि मेरी हिन्दी इतनी अछि नहीं थी . अपनी डिसएबलिटी भूल कर सारा धियान जयविजय पर लगा दिया और अपनी जीवन कथा ही लिख डाली . इस जीवन कथा से मुझे बहुत सहारा मिला . अब यही जीवन कथा मैं यहाँ की एक पंजाबी की पत्रिका mannjitt weekly में पब्लिश कर रहा हूँ और जितने पंजाबी यहाँ रहते हैं वोह सभी मेरी कहानी पढ़ते हैं और वोह कहते हैं कि यह तो उन की ही कहानी है .बहुत हुंकारा मिल रहा है और मेरी मात्र भाषा पंजाबी होने के कारण जो मैं हिन्दी में लिख नहीं सका था, अब लिख रहा हूँ और मेरा खियाल है अब इस कथा के २५० एपिसोड से भी ज़ादा होने की संभावना है . यह सभ संभव इस लिए ही हो सका की आप ने अपनी इतनी बड़ी पत्रिका में जगह दी . पांच साल होने पर मैं आप को भी वधाई पेश करता हूँ . बहुत बहुत धन्यवाद विजय भाई !
आप दोनों को बहुत बहुत बधाई ! पढ़कर अच्छा लगा। गुरुमेल जी से बहुत अपनत्व हो गया है। उनसे मैंने बहुत कुछ सीखा भी है। उन जैसा व्यक्तित्व संसार में दुर्लभ है। वे शतायु हों, प्रभु से यही प्रार्थना है।
प्रिय विजय भाई जी, अपनत्व गुरमैल भाई का स्वभाव है, उनसे जो भी मिलता है, वे उसे अपना बना लेते हैं. आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. गुरमैल भाई से बहुत कुछ सीखने को मिलता है. उन जैसा व्यक्तित्व संसार में दुर्लभ है. वे शतायु हों, प्रभु से यही प्रार्थना है. बधाई के लिए बधाई.
विजय भाई , परणाम .पता ही नहीं चला की कब पांच साल पूरे हो गए . सच बताऊँ, लीला बहन के बाद आप ने ही मुझे लिखने की कला सिखलाई . पहली दफा किसी की कोई रचना पत्रिका में छप जाए तो लिखने वाले को कितनी हौसला अफजाई मिलती है, शायद अंदाजा लगाना कठिन है और आप ने युवा सुघोष में मेरी कोई भी रचना बगैर किसी हिच्क्चाह्ट से पब्लिश कर दी हालाँकि मेरी हिन्दी इतनी अछि नहीं थी . अपनी डिसएबलिटी भूल कर सारा धियान जयविजय पर लगा दिया और अपनी जीवन कथा ही लिख डाली . इस जीवन कथा से मुझे बहुत सहारा मिला . अब यही जीवन कथा मैं यहाँ की एक पंजाबी की पत्रिका mannjitt weekly में पब्लिश कर रहा हूँ और जितने पंजाबी यहाँ रहते हैं वोह सभी मेरी कहानी पढ़ते हैं और वोह कहते हैं कि यह तो उन की ही कहानी है .बहुत हुंकारा मिल रहा है और मेरी मात्र भाषा पंजाबी होने के कारण जो मैं हिन्दी में लिख नहीं सका था, अब लिख रहा हूँ और मेरा खियाल है अब इस कथा के २५० एपिसोड से भी ज़ादा होने की संभावना है . यह सभ संभव इस लिए ही हो सका की आप ने अपनी इतनी बड़ी पत्रिका में जगह दी . पांच साल होने पर मैं आप को भी वधाई पेश करता हूँ . बहुत बहुत धन्यवाद विजय भाई !
‘आज का श्रवणकुमार’ ब्लॉग हमारे लिए मील का पत्थर जैसा ब्लॉग बन गया. इसी ब्लॉग पर हमें गुरमैल भाई जैसे पाठक-कामेंटेटर मिले, जिन्होंने कितनी भी बाधाएं आने पर हमारे ब्लॉग का साथ नहीं छोड़ा. यही साथ हमारा संबल बन गया. इस सुनहरी अवसर प्रस्तुत है गुरमैल भाई पर पांच लेखकों के विचार. आप सब लोगों के विचार भी आमंत्रित हैं. हम उन सबको एकत्रित कर गुरमैल भाई के पास पहुंचा देंगे, क्योंकि उनके पास अपना ब्लॉग नहीं पहुंच रहा. गुरमैल भाई के साथ आप सब लोगों का भी बराबर साथ देते रहने का कोटिशः शुक्रिया और धन्यवाद.
लीला बहन , आज सुबह ही मुझे याद आया की मार्च में आज के श्रवण को पांच साल हो जायेंगे लेकिन डेट याद नहीं थी .आप के ईमेल ने सारी यादें ताज़ा कर दीं . कुलवंत अपने सेंटर जा रही थी तो उन को बुला कर मैं ने आप का ईमेल दिखाया . आप को उस ने बहुत आशीषें दीं . उस के लफ्ज़ हैं कि इतना तो कोई सगा भी नहीं करता जितना लीला बहन ने हमारे लिए किया है . लेखक बनने का तो मैं सप्ने में भी सोच नहीं सकता था लेकिन मुझे तो अब हैरानी इस बात पे हो रही है की यहाँ मैं अपनी कहानी पंजाबी में पब्लिश कर रहा हं, वहां बड़े बड़े राइटर हमारे घर टेलीफून करते हैं और कुलवंत जवाब देती है . सकूल के ज़माने में जिन दोस्तों का मैंने अपनि काहानी में ज़िकर किया है वोह सम्पर्क करते हैं . और यह सब आप ने ही किया लीला बहन क्यों की इतने साल फेस बुक पर जा कर देखा हैं की बहुत लेखक नुक्ताचीनी कर जाते हैं की मेरी रचना में अशुधीआ बहुत हैं और फिर मुझे कहना पढता है की भाई मैं पंजाबी हूँ, हिन्दी इतनी पढ़ी नहीं लेकिन आप ने मेरी अशुधिओं को भी शुद्ध करके जाना . बहुत बहुत धन्यवाद लीला बहन .