गज़ल
देख कर जो हमें चुप-चाप गुज़र जाता है
कभी उस शख़्स को हम ख्याल किया करते थे .
अब ज़िंदगी सुकून से महरूम हुई जाती है
निगाहे करते मासूम दिखा जरा करते थे.
चुपी देकर धमका सा वो डरा निकल जाता है
कभी उस शख़्स लिये हम तो दुआ करते थे.
बड़े मासूम निगाहों से हमे देखते रहे थे
यहीं तो जाना लो अब दिल से वफा करते थे.
लगा जब भी दिल संभले पे रोए होंगे
तभी रेखा पा के हल जब नफ़ा करते थे.
— रेखा मोहन १२/३/१९