रोम रोम में राम बसे हैं, धड़कन-धड़कन गीत…
रोम रोम में राम बसे हैं, धड़कन-धड़कन गीत।
हमको तो ये सारी दुनिया, लगती है मनमीत।।
ज़िन्दगी प्रीत प्रीत बस प्रीत…
तेर-मेर की सोच बनी है, सबके दुख का कारण।
कर सकता हूँ सिद्ध इसे में, दे असंख्य उदाहरण।।
निज उर झाँको दुख का कारण, होगा तुम्हें प्रतीत…
अपने ही पापों के कारण, होते जन भयभीत…
ज़िन्दगी प्रीत प्रीत बस प्रीत…
सच्चाई के पथ पर माना, पग पग ख़ार मिलेंगे।
अपने ही दुश्मन बनकर, लेकर हथियार मिलेंगे।।
पर जिसने पाली जीवन भर, सच्चाई की रीति…
दुनिया चाहे ज़ोर लगाले, होगी उसकी जीत…
ज़िन्दगी प्रीत प्रीत बस प्रीत…
जो उसकी हाँ नें हाँ बोले, वो प्यारा लगता है।
कुंठित मन को उजियारा भी, अँधियारा लगता है।।
लाँघ नही सकते जो अपनी, कुंठाओं की भीत…
नही मिलेगी कभी सफ़लता, उनको आशातीत…
ज़िन्दगी प्रीत प्रीत बस प्रीत…
जिनको खुद भर रहा भरोसा, करते नही निराशा।
सब पर शंका करने वाले, बनते स्वयं तमाशा।।
मिथ्यावादी जन जीवन भर, रहते हैं भयभीत…
सत्य गूँजता है जीवन में, बन जीवन संगीत…
ज़िन्दगी प्रीत प्रीत बस प्रीत…
सतीश बंसल
१५.०३.२०१९