गीतिका/ग़ज़ल

हाथ मिले मन में अनबन है, सच मानो…

हाथ मिले मन में अनबन है सच मानो
भाई भाई का दुश्मन है सच मानो

अपनो से तो ग़ैर भले हैं अपनो में
बस कहने का अपनापन है सच मानो

सोना तपता है भट्टी में तब जाकर
सोने से बनता कुंदन है सच मानो

जो मन में है वो चहरे पर दिखता है
हर चहरा मन का दर्पन है सच मानो

करती हो महसूस जिसे अपने दिल में
वो मेरे दिल की धड़कन है सच मानो

इस मिट्टी में खून मिला है पुरखों का
ये मिट्टी पावन चंदन है सच मानो

जैसे गीत ग़जल कविताएं लिखता हूँ
बिल्कुल वैसा मेरा मन है सच मानो

सतीश बंसल
१३.०३.२०१९

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.