गज़ल
बदला-बदला सा नज़ारा है
फिर किसी ने हमें पुकारा है
वो शख्स हमें तकता ही नहीं
जो हमको जान से प्यारा है
मैं मिट्टी का इक जर्रा हूँ
तू आसमान का तारा है
किसको आवाज़ लगाऊँ अब
तुम बिन न कोई सहारा है
फुर्सत हो तो आकर देखो
तुम बिन क्या हाल हमारा है
तू हाथ पकड़ ले मेरा तो
मुझे हर इल्ज़ाम गवारा है
–– भरत मल्होत्रा