आशीर्वाद
प्रायः हर थ्री व्हीलर या ई. रिक्शा पर ‘मां की आशीर्वाद’ अंकित होता देखा है, पर अक्सर आशीर्वाद की वर्तनी अशुद्ध होती है. आज भी एक ई.रिक्शा पर आशीर्वाद की अशुद्ध वर्तनी देखकर हमें आशीर्वाद का एक सुंदर वाकया याद आ गया.
राष्ट्रपति भवन में पद्म पुरस्कारों के वितरण समारोह का कार्यक्रम चल रहा था.
कार्यक्रम से पहले ही सभी सम्माननीय प्रतिभागियों और अतिथियों को राष्ट्रपति भवन के प्रोटोकॉल से अवगत करा दिया जाता है. उस दिन भी ऐसा ही किया गया था.
सभी पुरस्कृत हस्तियों की तरह कर्नाटक में हजारों पौधे लगाने के लिए 107 साल की सालूमरदा थीमक्का को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा पद्म श्री से सम्मानित किया गया.
थीमक्का की कहानी धैर्य और दृढ़ संकल्प की कहानी है. जब वह उम्र के चौथे दशक में थीं तो बच्चा न होने की वजह से खुदकुशी करने की सोच रही थीं, लेकिन अपने पति के सहयोग से उन्होंने पौधारोपण में जीवन का संतोष तलाश लिया.
समारोह में हल्के हरे रंग की साड़ी पहने ‘वृक्ष माता’ थीमक्का ने अपने मुस्कुराते चेहरे के साथ माथे पर त्रिपुंड लगा रखा था. थीमक्का ने बरगद के 400 पेड़ों समेत 8000 से ज्यादा पेड़ लगाएं हैं और यही वजह है कि उन्हें ‘वृक्ष माता’ की उपाधि मिली है. अपने बच्चों की तरह वृक्षों की सेवा करते-करते उन्हें वृक्षों को आशीर्वाद देने की आदत-सी पड़ गई थी.
वृक्षों के स्वास्थ्यकारी सानिध्य ने ही शायद उन्हें इतनी लंबी स्वास्थ्यकारी उम्र का तोहफ़ा दिया था. इन्हीं वृक्षों ने उन्हें पहले ‘वृक्ष माता’ और अब पद्म श्री के सम्मान से सम्मानित करवाया था. फलस्वरूप जब पुरस्कार लेने पहुंची थीमक्का को जब उनसे चेहरा कैमरे की तरफ करने को कहा गया तो उन्होंने राष्ट्रपति का माथा छू लिया और आशीर्वाद दिया.
आशीर्वाद देना उनका स्वभाव जो था.
इस ब्लॉग को भी पढ़ें-
हिंदी वर्तनी की सामान्य अशुद्धियां
107 साल की बुजुर्ग थीमक्का सबकी माता के समान हैं. ‘वृक्ष माता’ होने के कारण भी शायद वृक्षों अपनी संतान मानकर उन्हें वृक्षों को आशीर्वाद देने का स्वभाव बन गया. आशीर्वाद देने का स्वभाव होने के कारण उन्होंने राष्ट्रपति का माथा छू लिया और आशीर्वाद दिया.