नम हवा फुलवारियों की
नम हवा फुलवारियों की खूब भाती है मुझे।
नित्य नव भावों भरी कविता सुनाती है मुझे।
रात के आगोश में सुख स्वप्न गाते लोरियाँ
प्रात प्यारी शबनमी, निस दिन जगाती है मुझे।
लाल सूरज जब समंदर में उतरता शाम को
तब क्षितिज की स्वर्ण सी आभा लुभाती है मुझे
रूप जब विकराल होता, गर्मियों में धूप का
नीम की ठंडी हवा, झूला झुलाती है मुझे।
सावनी बरसात की, आँगन में लगती जब झड़ी
नाव कागज़ की वो भूली, याद आती है मुझे।
शीत जब परवान चढ़ती, काँपता थर-थर बदन
धूप अपनी गोद में, हँसकर बिठाती है मुझे।
चाँदनी रातों में जब तुम दूर होते हो कभी।
चंद्रमा की हर किरन, पल-पल रिझाती है मुझे।
प्रिय तुम्हारे साथ का अहसास है ताकत मेरी
‘कल्पना’ हर ऋतु परी, तुमसे मिलाती है मुझे।
-कल्पना रामानी