कविता

पुलवामा की धरा पर ख़ूनी होली

जब धरा पर खेले दुश्मन, वीरों के ख़ून से होली

कैसे मैं कविता लिखू,.. स्याही भर लाल-काली

भरत खंड का वासी राज, गहन मौन में खोया हूँ

वीर शहीदों के यादो में, लिखते-लिखते रोया हूँ

पुलवामा में आतंकीयों ने, वीरों के लहू से रंगाये

वीर माताओं के लालों को मौत की नींद सुलाये

टूट गयी लाल चूड़ियाँ,. लाली भी होंठो से छूटी

मंगलसूत्र के कितने धागों की, ये माला भी टूटी

बहनों की राखी दबी,. शहीदों के साथ घाटी में

कुम कुम भी धरा रहागा आरतीयों की थाली में

परीवार जनो के आंसूओ से सातों सागर है हारे

मेंहदी रचे हाथों से ख़ुद,. अपने मंगलसूत्र उतारे

वीर माताओं के चरणो में,. ‘राज’ शीश झुकाए

वीर पत्निया भी माथे शहीदों का गुलाल लगाए

✍️ राज मालपाणी ’राज’

शोरापुर-कर्नाटक

राज मालपाणी ’राज’

नाम : राज मालपाणी जन्म : २५ / ०५ / १९७३ वृत्ति : व्यवसाय (टेक्स्टायल) मूल निवास : जोधपुर (राजस्थान) वर्तमान निवास : मालपाणी हाउस जैलाल स्ट्रीट,५-१-७३,शोरापुर-५८५२२४ यादगिरी ज़िल्हा ( कर्नाटक ) रूचि : पढ़ना, लिखना, गाने सुनना ईमेल : [email protected] मोबाइल : 8792 143 143