मुक्तक/दोहा

साजन आना होली में

आम्र मंजरी की खुशबू से, सबका मन बौराया है,
महका हुआ है तन-मन सारा जबसे बौर आया है।
फगुनहटा की पवन पिया मिलन की चाह बढाये,
छुट्टी लेकर साजन मेरा फिर भी घर ना आया है।।1।।

साजन से पहले बोला था अबकी आना होली में,
भर पिचकारी मुझे भिगाना, रंग लगाना होली में।
बहुत दिनों की चाहत थी, सोचा था अबकी हो पूरी,
इसी लिये पहले बोला था, साजन आना होली में।।2।।

टूट रहा है बदन हमारा, पर निर्मोही ना आया,
आस लगाकर मैं बैठी थी पर निर्मोही ना आया।
सखियाँ सारी छेड़ रही हैं, उनसे दांव लगाया था,
विश्वास सजन पर था मुझको, पर निर्मोही ना आया।।3।।

खेल रहे हैं सभी हर्ष से, सखियों ने रंग डाला है,
जिसके हाँथ में जो रंग आया सभी ने रंग डाला है।
एक रंग बस बचा है साजन, प्रीत तेरी ना पायी मैं,
रोता चेहरा छुपा रंग से, सखियों ने रंग डाला है।।4।।

सोंच रही हूँ रूठ के साजन, तुमसे अब ना बोलूँ मैं,
आओ जब परदेश से लौट के, दरवज्जा ना खोलूँ मैं।
नैन मिलाने की छोड़ो, ना तिरछी नैन लखूं तुमको,
करके अँधेरा घर के अन्दर, एक शब्द ना बोलूं मैं।।5।।

सुनो प्रिये ना रूठो तुम, मैं प्रदीप जल जाऊंगा,
सभी शिकायत होगी पूरी, सुनो दीप जब आऊंगा।
मजबूरी तुम मेरी समझ लो, शौक नहीं है दूर रहूँ,
आकर के प्रेम रंग में तुम्हे “दीप” रंग जाऊंगा।।6।।

।।प्रदीप कुमार तिवारी।।
करौंदी कला, सुलतानपुर
7978869045

प्रदीप कुमार तिवारी

नाम - प्रदीप कुमार तिवारी। पिता का नाम - श्री दिनेश कुमार तिवारी। माता का नाम - श्रीमती आशा देवी। जन्म स्थान - दलापुर, इलाहाबाद, उत्तर-प्रदेश। शिक्षा - संस्कृत से एम ए। विवाह- 10 जून 2015 में "दीपशिखा से मूल निवासी - करौंदी कला, शुकुलपुर, कादीपुर, सुलतानपुर, उत्तर-प्रदेश। इलाहाबाद मे जन्म हुआ, प्रारम्भिक जीवन नानी के साथ बीता, दसवीं से अपने घर करौंदी कला आ गया, पण्डित श्रीपति मिश्रा महाविद्यालय से स्नातक और संत तुलसीदास महाविद्यालय बरवारीपुर से स्नत्कोतर की शिक्षा प्राप्त की, बचपन से ही साहित्य के प्रति विशेष लगव रहा है। समाज के सभी पहलू पर लिखने की बराबर कोशिस की है। पर देश प्रेम मेरा प्रिय विषय है मैं बेधड़क अपने विचार व्यक्त करता हूं- *शब्द संचयन मेरा पीड़ादायक होगा, पर सुनो सत्य का ही परिचायक होगा।।* और भ्रष्टाचार पर भी अपने विचार साझा करता हूं- *मैं शब्दों से अंगार उड़ाने निकला हूं, जन जन में एहसास जगाने निकला हूं। लूटने वालों को हम उठा-उठा कर पटकें, कर सकते सब ऐसा विश्वास जगाने निकला हूं।।* दो साझा पुस्तके जिसमे से एक "काव्य अंकुर" दूसरी "शुभमस्तु-5" प्रकाशित हुई हैं