होली।
सपना ने आँखें मलते हुए बाहर देखा बच्चे गली में होली खेल रहे थे, इतनी सुबह….मन मे बुदबुदाई।
मन तो था, पर दादी के डर से नहीं जा रही थी। पर थोड़ी देर बाद सब्र का पैमाना टूट गया और गुब्बारे और गुलाल का पैक्ट लेकर होली खेलने चल पड़ी। ममी और पापा ने चुपके से इजाज़त दे दी थी,दादी भी छुप कर सपना को जाते देख रही थी वो जानती थीं सपना का मन है पर वो थोड़ा संयम और अनुशासन पसंद थी उन्हें गल्त बातें पसंद नहीं थी। सपना सब जानती थी पर खुद को रोक नहीं पाई अपनी सहेलियों के साथ खूब जमकर होली खेली और वापिस घर आई तो सबके मुँह पर गुलाल लगा देख और खासकर दादी के गालों पर भी….उसका डर लगभग खत्म होने लगा था,दादी ने उसे आता देखकर हंसकर कहा हमारे साथ होली नहीं खेलोगी सपना?? सपना हैरान थी पर खुश भी हुई और बड़े प्यार से दादी को भी रंग लगाया। दादी ने सपना को गले लगाकर कहा बेटा हर त्योहार का अपना महत्व होता है उसे अच्छे से मनाना भी चाहिये और उसमें छुपे संदेश कोऔर भावना को भी समझना चाहिये ,इससे त्योहार का मज़ा दौगुना हो जाता है ये त्योहार हमें अपनी संस्कृति के बारे में बताते हैं पर इनकी आड़ में किसी को परेशान करना मुझे पसंद नहीं।