गज़ल
दो दिन सुकून से जीना मुहाल करते हैं
ये दुनिया वाले भी कितने सवाल करते हैं
न रह सकेंगे खुश वो लोग किसी कीमत पर
जो दूसरे की खुशी पर मलाल करते हैं
हम बेकार हैं तो भी कुछ कम मसरूफ नहीं
जो लोग कुछ नहीं करते कमाल करते हैं
हवा देने से आग और फैल जाएगी
ज़रा सी बात पर क्योंकर बवाल करते हैं
सचबयानी के मुजरिम को शहर में तेरे
बड़ी बेदर्दी से हाकिम हलाल करते हैं
खबर है सबको कि हो दुश्मनी या दोस्ती हम
जो भी करते हैं वो बेमिसाल करते हैं
— भरत मल्होत्रा