गीत- ग़म का विष कोई पीना नही चाहता
प्रीत की सुधा सबको चाहिए मगर
ग़म का विष कोई पीना नही चाहता
इश्क में डूबने की बात करते बहुत
कोई तूफां से लड़ना नहीं चाहता
शूल भरी राह को भी जब चुनना पडे़
तो हसकर कदम मित्र बढ़ाते चलो
मंजिल दूर सही किंतु मिल जायेगी
लक्ष्य पे निरंतर निगाहें गढा़ते चलो
वक्त से सीख लो वक्त की चाल को
जो गिरके संभलता हर हालात में
मायूसी का अंधेरा जब डराने लगे
इससे पहले घिरे मन सवालात में
बदलता नहीं वक्त को दोष देते किंतु
खुद को कोई बदलना नहीं चाहता
चांद के दाग देख करे घृणा सभी
निज चित्र चरित्र को निहारे नहीं
कैसे कह दूँ कि तू आदमी बन गया
आदमी की शक्ल को संवारे नहीं
माझी जिंदगी की नाव पार हो कैसे
जरा सी लहर से हौसला हिल गया
चुबन का अहसास बस गुलाब को
जो महक लिए शूलों से छिल गया
पत्थर को भी पिघलते देखा हमनें
मोम बन कोई पिघलना नहीं चाहत
आदमी की खोज में भटका रातदिन
आदमी में आदमी नजर आया नहीं
कहते सभी बाप की बैटे में छबि
चित्र में चरित्र का असर आया नहीं
तौलता वो रिश्ते दौलत की तुला से
वजन भावनाओं का ये ज्यादा हुआ
कस्मे भी दी रस्में सारी हुई थी रंज
प्रीत के रिश्ते में अटूट वायदा हुआ
दौलत की चाह में रिश्ते भूलें सभी
रिश्तों को दौलत बनाना नहीं चाहता
सबको उठने की चाहत जिंदगी में
कोई भी गिर संभलना नहीं चाहता
— भानु शर्मा रंज