पानी …
बहते हुए पानी की बस इतनी कहानी है
कि ये है तो हम है और हमारी जिंदगानी है ।
निर्झर कल-कल, छल-छल है जल
इससे पल्लवित पोषित नभ-थल
कितना पावन है ये जिसका रंग आसमानी है।
हरी है घरती और भरा गगन है
पानी है तो जन जीवन है ,
पर अर्जित अमृत व्यर्थ खो रहे कैसी बेध्यानी है ।
नदियों नालों में गंद ना करो
पृथ्वी का भविष्य बंद ना करो ,
बुंद बुंद सहेजो , बात सबको समझानी है ।
बहते हुए पानी की बस इतनी कहानी है ।
कि ये हैं तो हम है या हमारी जिंदगानी है
— साधना सिंह