गीत/नवगीत

पानी …

बहते हुए पानी की बस इतनी कहानी है
कि ये है तो हम है और हमारी जिंदगानी है ।

निर्झर कल-कल, छल-छल है जल
इससे पल्लवित पोषित नभ-थल
कितना पावन है ये जिसका रंग आसमानी है।

हरी है घरती और भरा गगन है
पानी है तो जन जीवन है ,
पर अर्जित अमृत व्यर्थ खो  रहे कैसी बेध्यानी है ।

नदियों नालों में गंद ना करो
पृथ्वी का भविष्य बंद ना करो ,
बुंद बुंद सहेजो , बात सबको समझानी है ।

बहते हुए पानी की बस इतनी  कहानी है ।
कि ये हैं तो हम है या हमारी जिंदगानी है

साधना सिंह

साधना सिंह

मै साधना सिंह, युपी के एक शहर गोरखपुर से हु । लिखने का शौक कॉलेज से ही था । मै किसी भी विधा से अनभिज्ञ हु बस अपने एहसास कागज पर उतार देती हु । कुछ पंक्तियो मे - छंदमुक्त हो या छंदबध मुझे क्या पता ये पंक्तिया बस एहसास है तुम्हारे होने का तुम्हे खोने का कोई एहसास जब जेहन मे संवरता है वही शब्द बन कर कागज पर निखरता है । धन्यवाद :)