वीर भगत सिंह युवा वर्ग के लिए प्रेरणा
जन्म : 28 सितंबर 1907
आंदोलन : प्रमुख स्वतंत्रता संग्राम
जन्म स्थल : गांव बंगा जिला लायलपुर, पंजाब ( अब पाकिस्तान में)
प्रमुख संगठन : नौ जवान, भारत समग्र हिंदुस्तान सोसियालिस्ट रिपब्लिकन एसोसिऎसन
“सर्फरोसी की तमन्ना, अब हमारे दिल में हे,
देखना है जोर कितना बाजू ए कातिल मे हे “
भगत सिंह जी जेल में करीब 2 साल रहे, इस दौरान वे लेख लिख कर अपने क्रांति कारी विचार व्यक्त करते रहे थे, जेल में रहते हुए भी उनका अध्ययन बराबर जारी रहा था, उनके उस दौरान लिखे गए लेख व सगे संबंधी ओ को लिखे गए पत्र आज भी उनके विचारो के दर्पण मे हे, अपने लेखों में उन्होने कई तरह से पूंजी पति ओ को अपना शत्रु बनाया गया था, उन्होने लिखा कि, मजदूरों का शोषण करने वाले चाहे वह भारतीय ही क्यो न हो, वह उनके शत्रु है, उन्होने जेल में अंग्रेजी में एक लेख लिखा था, उसका शीर्षक था कि “मै नास्तिक हू”, जेल में भगत सिंह ने उनके साथियो ने 64 दिनो तक भूख हड़ताल की थी, उनके एक साथी यतींद्र नाथ दास ने तो भूख हड़ताल मे अपने प्राण त्याग कर दिया था,
ख्याति और सम्मान :
उनकी मृत्यु की खबर लाहौर के दैनिक ट्रिब्यून तथा न्यूयॉर्क के एक पत्र डेली वर्कर ने छापा था, इस के बाद भी कई मार्क्सवादी पत्रों में उन पर लेख छपे पर यू की, भारत में 30 दिनों मार्क्सवादी पत्रों में प्रकाशित करने पर प्रतिबंध लगा दिया था, इस लिए भारतीय बुद्धिजीवियों को इसकी जानकारी नहीं थी, देशभर में शहादत को याद किया गया,
दक्षिण भारत में पेरियार ने उनके लेख “मे नास्तिक क्यो हू?” पर अपने साप्ताहिक पत्र कुड़ाई आरसू मे 21 – 22 मार्च 1931 में अंक मे तमिल संपादकीय लिखा था इसमे भगत सिंह की प्रसंशा की गई थी, तथा उनकी शहादत को ब्रिटिश साम्राज्य वाद के ऊपर जीत के रूप में देखा गया था,
आज भी भारत और पाकिस्तान की जनता भगत सिंह को आजादी के दीवाने के रूप में देखते हैं, जिसने अपनी जवानी सहित सारी जिंदगी देश के लिए समर्पित कर दिया, उनके जीवन ने कई हिन्दी फिल्मों के चरित्रों को प्रेरित किया,
व्यक्तित्व :
भगत सिंह का हिन्दी, उर्दू, पंजाबी तथा अंग्रेजी के अलावा बांग्ला भी सीखी थी, जो उन्होने बटुकेश्वर दत्त से सीखी थी, उनका विश्वास था कि, उनकी शहादत से भारतीय जनता और उद्विग्न हो जाएगी और एसा उनका जिंदा रहनेसे शायद ही हो पाए, इसी कारण उन्होने मौत की सजा सुनने के बाद भी माफीनामा लिखने से मना कर दिया था, राम प्रसाद बिस्मिल ने अपनी आत्म कथा में लिखा है कि, जो जो दिशा निर्देश जारी किए गए थे, भगत सिंह ने उसका अक्षर सह पालन किया था,
उन्होने अंग्रेज सरकार को एक पत्र लिखा था जिसमे कहा गया था कि, उन्हे अंग्रेज सरकार के खिलाफ भारत भारतीयों को युद्ध का प्रतीक एक युद्ध कही समझा जाए, तथा फांसी की सजा देने के लिए बाजार में गोली से उड़ा दिया जाय, फांसी की सजा के पहले 3 मार्च को अपने भाई कुल नार को पत्र मे भारत सिंह ने लिखा था कि,
“उन्हे यह फिक्र है, हरदम, नई तर्ज ए – जामा क्या है?
हमे यह शौक है देखे सितम के इतन्हा कया है?”
“दहर से क्यो खफा रहे, चरखे का क्या गिला करे,
सारा जहा अद सही, आप से मुकाबला करे “
इस जोशीली पंक्तियों से उनकी शौर्य का अनुमान लगाया जा सकता है, चंद्र शेखर आजाद से पहली मुलाकात के दौरान जलता हुआ मॉम बत्ती पर अपना हाथ रखकर उन्होने कसम खाई थी कि, उनकी जिंदगी देश पर ही कुर्बान होगी और उन्होने अपनी वह कसम पूरी कर दिखाई,
किसी ने सच कहा है कि, बूढ़े आदमी नहीं कर सकते हैं वो तो बहुत बुद्धिमान और समाजदार होते हैं, सुधार तो होते हैं, युवकों के परिश्रम, साहस, बलिदान और निष्ठा से जिनको भयभीत होना आता ही नहीं और जो विचार कम और अनुभव अधिक करते हैं,
क्रांति कारी वीर सरदार भगत सिंह :
युवा वर्ग के लिए प्रेरणा रूप हे!
वीर भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को एक खानदान परिवार में हुआ था, उनका परिवार देश प्रेमी था, देश भक्ति के रंग में डूबा हुआ था, उनके मन तो भारत की स्वतंत्रता ही महत्वपूर्ण थी, इस लिए देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त करा ने चाहते थे, यही वीर भगत सिंह ने अपने आदर्श और उसूलो के खातिर शादी भी नहीं की थी, और उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद दिल्ली जाकर पत्रकार के रूप में जीवन शुरू किया था, हिंसक क्रांति कारी एवं अग्रणी सभ्य के तौर पर “इंकलाब जिंदा बाद” के नारे के साथ बम फेंककर पत्रिका ओ की बारिश कर दिया, था, इस लिए उस गुन्हाके बदले में ब्रिटिश सरकार ने उन्हे 23 मार्च 1931 को फांसी पर लटका दिया गया था,.
ई. स. 1926 में उन्होने कुंदन लाल और चंद्र शेखर आजाद के साथ मिलकर काकोरी षड्यंत्र के राजद्वारी केदी ओ को जेल से रिहा करने के लिए एक योजना बनाई थी, भगत सिंह को लगा था कि, भारत के क्रांति कारियोमे जितना होना चाहिए उतना संगठन नहीं है, इस लिए उन्होने दिनांक 8 दिसम्बर के दिन समग्र भारत के मुख्य क्रांति कारियोको एक सभा का आयोजन करके बुलाए थे, और उसमे नई समिति की रचना हुई, उसका नेटरुत्व भगत सिंह, आयार, और सुखदेव को सोपा गया था, हकीकत में लाला लाजपात राय पर लाठी चार्ज हुआ था इस लिए वह मर गए थे, उस घटना ने भगत सिंह को हिला दिया था चंद्र शेखर और भगत सिंह के हथियारों का अनोखा इतिहास रहा है,
8 अप्रेल 1929 के दिन एसेंबली मे दो विधेयक पेश होने वाले थे, इस लिए क्रांति कारियोकि योजना के मुताबिक यह विधेयक के विरोध में अपनी शक्ति का एहसास के लिए बम फेका गया था,
दिल्ली के सेसाँस जज लियोनॉई मिडिटन की अदालत में, भगत सिंह ने अपनी सफाई में कहा था कि, “बम वैग्नानिक ढब से बनाया गया था, जिससे जान हानि न हो, पाए, यदि बम मे जोरदार पॉटऎसीयं क्लोरेट होता तो एसेंबली के कही सारे सदस्य मारे जाते,
भगत सिंह ने लाहौर कोर्ट में कहा था कि, बम की ताकत के बारे में हमे जानकारी नहीं थी, नहीं तो हम नेहरू और केलकर जेसे सम्मानीय लोगों की उपस्थिति में हम थोड़ी बम धमाके करने की हिम्मत जुटा पाते,
सरदार भगत सिंह के लिए पंडित नेहरू ने अपनी “आत्म कथा” मे लिखा है कि, मे भगत सिंह और उनके साथियो के बारे में अंत समय तक मौन धारण कर के बैठा रहा था, क्यो कि,, मै डरता था कि, मेरे कोई शब्द से फांसी की सजा रद होते हुए अटक न जाय, मेरे ह्रदय में इच्छा होती थी कि, मे आक्रोश करू लेकिन कामनासीब यह हुआ कि, हम सभी मिलने पर भी उन्हे बचा न सके, वो हमे बहुत प्यारे थे, उनका महान त्याग और साहस तथा समर्पण भारत के नव युवा ओ के लिए प्रेरणा रूप हे, हमारी यह अ सहायता पर देश में दुख प्रकट किया जाएगा, साथ हमे हमारे देश के उन स्वर्गीय आत्मा ओ पर गर्व है, जब इंग्लैंड हमारे साथ समझौता की बात करे तब हमे भगत सिंह की बात भूलना नहीं चाहिए,
किसी ने सच कहा है कि, जो काम हजारो भाषण से या पुस्तकों से न हो सका वह काम ये वीर भगत सिंह ने एक ही धमाके में करके दिखाया!
— डॉ गुलाब चंद पटेल