ग़ज़ल
तुझसे रुबरु होने को दिल करता है।
दिल मेरा बच्चे के मानिंद मचलता है।
रूप ऐसा तेरा कि ना कभी दिखाई दिया।
झुरमुठों की एक आस पर ये चलता है।
तेरी ज्योति से जगमग ये कायनात सारी,
तुझे ढूंढने की कोशिश में ये बहलता है।
कल तक फकीरी में जो गुजारे थे दिन
“निशा” आज तेरे वजूद पर महकता है।
— निशा नंदिनी
तिनसुकिया, असम