फ़ानी दुनियां
फिर वही हम वही तनहाईयां है
फिर वही आलम ए ख़ामोशियां हैं
तीरगी फिर वही शब ए ग़म की
गुमशुदा हो रही परछाईयां हैं
सांसों के साथ चल रही छुपके
आहों की चीखती सरगोशियां हैं
कोई शिकवा गिला करें किससे
सबकी अपनी यहां मज़बूरियां हैं
दिल है नादान मानता ही नहीं
हो रहीं ख़त्म सब कहानियां हैं
कौन होता है यहां कब किसका
आनी जानी ये फ़ानी दुनियां है
— पुष्पा अवस्थी “स्वाती”