कविता

मेरा रंग दे बसंती चोला

चाह नहीं मैं पन्नों पर अंकित हो इठलाऊं,
चाह नहीं मैं सात सुरों में सजकर इतराऊं,
चाह नहीं मैं काव्य गोष्ठी में सुनाया जाऊं,
चाह नहीं मैं होठों पर खुशी बन मुस्काऊं।

चाह नहीं मैं पुरस्कार पाने हेतु ललचाऊं,
चाह नहीं मैं आंसू बनकर लुढ़क जाऊं,
चाह नहीं मैं पाठशाला के प्रार्थना में गाया जाऊं,
चाह नहीं मैं चुनावी माहौल में रंग जमाऊं।

चाह नहीं मैं गली गली में बजकर मन बहलाऊं,
मुझे गा देना ऐ वीर जवानों उस पथ पर,
शहीद हुए भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु,
भारत मां के लिए जहां पर फांसी चढ़कर।

भुला मत देना उनको मेरे भारतवासियों,
बिसरा मत देना तुम उनकी बलिदानी,
ऐसे वीर सपूतों के लिए दो आंसू बहा देना
तुम्हारे सुख के लिए जिसने लूटा दी जवानी।

पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- [email protected]