गर पैसे कागज के टुकड़े होते
गर पैसे सिर्फ कागज के टुकड़े होते
तो समाचारो में उजागर मुखड़े होते
ना भागते लोग चकाचौंध की ओर
होती अमीर गरीब की एक सी भोर
बदल जाती फिल्मी रीति रिवाज
ना आती कभी घुंघरू की आवाज
धूल से सनी वो किसानी मेहनताना
ना मांगती कभी सरकारों से हर्जाना
माल्या, नीरव कोई फरार नही होता
बाबा रामदेव का किरदार नही होता
प्रकृति की गोद मे ये नींद हसीन होती
तो ए सी कूलर नही घर घर नीम होती
मंच कविताओ के कभी ना खास होते
गर साहित्य प्रेमी भी एक सूरदास होते
संदीप चतुर्वेदी “संघर्ष”
अतर्रा – बाँदा उत्तर प्रदेश