तुझसे बिछड़कर…
तुझसे बिछड़कर मैं सोई नहीं,
दर्द आज भी है पर मैं रोई नहीं।
जख्मों को मेरे आकर सहलाए,
प्यार से उन पर मरहम लगाए,
बेदर्द ज़माने में ऐसा कोई नहीं।
बेशक तूने मुड़कर देखा नहीं,
हाथों में मिलन की रेखा नहीं,
पर तुझे पाने की आस खोई नहीं।
खेल ये अपनी तकदीरों का है,
वक़्त ही देता सब को धोखा है,
पर कौन है जिसने यादें ढोई नहीं।
कैसे तुमको “सुलक्षणा” समझाये,
आँखों में बसी तस्वीर मिट ना जाये,
सोचकर यही आँखें कभी धोई नहीं।
©️®️ डॉ सुलक्षणा अहलावत