लघुकथा -नया बोध
झमाझम बारिश हो रही थी और बादल गरज रहे थे। पल भर में आपे से बाहर मनु तेज़ ट्रक चलाता खोया सा अपनी किस्मत को कोस रहा था| मनु रुआसे सा बोला ,’अब तो इस जीवन का अंत ही इसका हल है, जब देखो लंगड़ा लंगड़ा सुन परेशान हो गया हूँ|’मनु दुखी सा सोचता माँ की मौत के बाद पिता ने कामवाली नौकरानी से विवाह कर लिया और फिर बेटे का जन्म हुआ तबसे मेरा जीवन नर्क सा हो गया है| सारा दिन ट्रक चला पैसा कमाओ पर घर में मेरी नौकर से अधिक ओकात नहीं| जो रिश्ता बचपन में माँ ने मेरे लिये पक्का किया था उसके साथ शादी भी छोटे भाई की तय हुई है क्योकि उसकी माँ साथ है और मेरी माँ नहीं| विवाह का हक भी खत्म हो गया| मनु नहर की ओर ट्रक दौडाए ज़ा रहा था| उसने रास्ते में चर्च खुला देखा बोला ,’दुनिया से जाने से पहले अपने गुनाहों की माफी माँग लूं जो जन्म लेकर दुनिया पर लंगड़े जीवन सा भार बनाया है|’
चर्च का परिसर खाली सा हो गया था। सोचा कोई अंदर ना ही हों तो अच्छा है। तभी देखा कुछ औरतें हवा में अपनी पल्लू संभालती बाहर निकल रहीं थी| मनु अब भी चर्च के बाहर यूँ ही खुले आसमान के नीचे खड़ा था। जोर की बारिश से पूरा बदन भीग रहा था। बदन के कपडे शरीर से लिपट अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे थे। एक दो ने भागते भागते उसे छत के नीचे छुपने के लिए कहा भी। लेकिन मनु उन्हें अनसुना कर बारिश में ही खड़ा रहा। उसका चेहरा ऐसा दिख रहा था जैसे किसी ताप से झुलस सा गया हो। बारिश कुछ थमना शुरू हो गईं तो वो चर्च में प्रवेश कर नीचे अँधेरे में बैठ रोने लगा और बच्चों की तरह सिसकियाँ भरने लगा| मनु एकटक निगाहें प्रभु यशु पर टिकाये सिसकते बोला ,’ प्रभु मुझे इस दुनिया में नही जीना मुझे मौत दे दो , लंगड़ा सुन थक गया हूँ मुझे ये सजा क्यों मिली?’ सब जगह तिरस्कार है और मेरा कोई अपना नहीं। प्रभु अब मैं और सहन नहीं कर सकता|’ मनु खूब रोते से प्रभु यशु से फरियाद कर रहा था| तभी देखा बिना टांगो का एक पादरी मोमबत्ती से सामने प्रकाश कर खड़ा था| मनु ने सोचा ओर बोला ,’ भगवान इसके तो एक भी टांग नहीं, मेरे एक तो है|” मनु चेहरे पर संतोष की परिछाई थी|
— रेखा मोहन 23/3/19