कविता

अमिट निशानियां

मिला है मानव जीवन तो
काम ऐसा कुछ कर जा प्यारे,
जग तुझे कभी भुला ना सके
चमकना बनके गगन के तारे।

पाल मन सागर में सप्न मोती
मिल जाए एक दिन उसे किनारे,
छोड़ जा ऐसे कदमों के निशां
मिटा न सके जिसे समय लहरें।

आने वाली पीढ़ी बढ़ेगी आगे
कदमों के निशां कर अनुसरण,
जग में नाम अमर होगा तेरा
चाहे कर ले मृत्यु तुझे वरण।

जीवन रेत का है एक घरौंदा
लहरें मिटाकर चली जाती है,
परंतु अच्छे कर्मों के निशां
समय लहरे कहां मिटा पाती है।

युग युग तक सबके दिलों पर
ऐसे वो अंकित रह जाते हैं,
जैसे एक पत्थर की छाती पर
छेनी से मूर्तिकार मूर्ति गढ़ते हैं।

इतिहास के पन्नों पर स्वर्ण अक्षरों से
लिखी जाएगी तेरी अमिट गाथा,
आगे आने वाली प्रत्येक पीढ़ी
स्मरण करें टेककर अपना माथा।

पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- [email protected]