गज़ल
भरम इश्क का हर हाल बनाए रखना
वो सामने हो तो नज़रों को झुकाए रखना
आए कि न आए उसकी ये मर्ज़ी ठहरी
अपनी चौखट पर एक शमा जलाए रखना
हिज्र के सर्द मौसम में गर्म रखेंगी तुम्हें
खुशनुमा यादों को सीने से लगाए रखना
रूह तक खिल उठे तेरी ख्याल से जिसके
उसकी तस्वीर निगाहों में बसाए रखना
काम खंजर न आए सुई की ज़रूरत हो जहां
हम गरीबों से भी कुछ रिश्ता बनाए रखना
ज्यादा मशहूरी भी मगरूर करती है अक्सर
खूबियां अपनी ज़माने से छुपाए रखना
— भरत मल्होत्रा