नया साल
बदल जाती होंगी ,नए साल में कैलेंडर के रंग और तहरीरें ।
बदल जाते होंगे घरों के आगे पड़े हुए कूड़े के भी दिन ।
बदल जाते होंगे दिलों में पनपते हुए नफरत के बीज ।
बदल जाते हैं ग्रहण के समय के पल और नक्षत्र ।
बदल जाते हैं लफ्जों के रहस्यमयी अर्थ के घेरे ।
फिर क्यों नहीं बदलती किसी के लिए दिल में बैठी हुई गलतफहमियां ।
फिर क्यों नही बदलती इंसानों में छिपी हुई शरारती आत्माएं ।
फिर क्यों नही बदलती मेरे तुम्हारे दिल के बीच की दूरियां ।
गर फुर्सत हो तो कभी बता देना जब कोई साथ न दे ।
गर फुरकत हो तो बता देना जब कोई हाथ न हो ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़