गीतिका/ग़ज़ल

बेटियाँ

बेटियाँ
आँगनो मे घूमती फिरती मचलती हैं तितलियाँ
छीन ली सारी खुशी वो अब न हैं अठखेलियाँ |
रंग सतरंगी बिखेरे आसमानी हो समां-
आंगनों मे है रंगोली जब तलक हैं बेटियाँ |
प्यार की बस्ती बसाये प्यार सब पर वारती-
प्यार की शबनम लुटाती रस भरी हैं बोलियाँ |
दो कुलों का मान और सम्मान का बोझा धरे –
हर खुशी को त्याग कर जा बैठती हैं डोलियाँ |
दुख छुपाती सुख लुटाती लब भरे मुस्कान से –
गुन गुनाती गीत गाती जा रही हैं लोरियाँ |
थाल पूजा का सजा अरदास सबके हित करें-
नेह आशीर्वाद की अनुपम लगाती रोलियाँ |
प्रेम के धागे मे मोती सा पिरो रिश्ते नये-
रेशमी धागों सी कोमल टूटती हैं डोरियाँ |
हाय कितना है कृतघ्नी ये पुरुष पोषित जहाँ-
जिसने जग दर्शन कराया खा रही है गालियाँ |
पल रही आतंक के साये तले खुद जन्मजा –
हाय कैसा वक्त आया लुट रही हैं बालियाँ |
गम ज़दा होकर मंजूषा भर गयी है दर्द से –
अब लहू का रंग पानी भयजदा हैं बेटियाँ |
काश ऐसा दिन भी आये मुक्त होकर उड़सकें
आँगनों की सोन पारियाँ फिर बजाये तालियाँ |
मन’मृदुल’ मधु वरती हैं कर स्वयं विषपान को-
वार कर सर्वस्व अपना रीत जाती डालियाँ |

©मंजूषा श्रीवास्तव’मृदुल’
लखनऊ ,उत्तर प्रदेश

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016