चुनाव की गुणा गणित बराबर भिन्न
इन दिनों पूरे देश में चुनावी महौल धीरे धीरे पांव पसार रहा है। वहीं चुनावी मैदान में कूदे भांति-भांति के प्रत्याशी जनता के दर्शन के लिये अपने -अपनेे तीर्थ की अथक परिक्रमा लगाने में जुटे हैं, किसी किसी मे तो धर्म की भावना इतनी प्रगाढ है कि इस पुन्य कार्य में पूरा कुनबा ही हाथ जोडे़ चलता नजर आ रहा है, अभी जुडे हुये ये हाथ! ठेंगा में किसके बदलेगें! यह तो समय के गर्भ से अभी पैदा होना बाकी है। इन दिनों करिया अक्षर भैंस बाराबर वाले चुनाव की गणित में किसी आर्यभट्ट से कम नही है और पढे़ लिखे लोग अपना सर पकड़ कर बैठें है कि जहां उनको अंक गणित, बीज गणित, रेखा गणित भिन्न पढाई गयी वहां पर उनको चुनाव की गणित क्यों नही पढ़ाई गयी।
वैसे अपने जनपद में ही नही बल्कि पूरे देश में महन्त जी की कृपा है इनकी कृपा से चार गद्दी चौदह पावा सलामत है, इनके चेलों में इतना भी दम नही है कि वह कहीं पर एक कुटिया ही बना सके। उधर रोजगार को लेकर आने वाली भर्ती को देख रहे बेरोजगार भी अब सोंचने लगें है कि हम तो कुछ कर नही पाये! अपने लाडले को नेतागिरी में आगे बढायेगे इस इस गिरी में कोई शैक्षिक योग्यता नही कोई अतिरिक्त डिप्लोमा नही, परीक्षा के बाद बाबू की पोस्ट मिलती है या चपरासी इस प्रकार के झमेले दूर रहेगें पहले कुछ दिन अंगूठा चूसेगा फिर बाद में तो सबको अंगूठा दिखा ही लेगा।
चुनावी गणित में कब कौन सा फार्मुला लगाकर अपने मतलब का परिणाम निकाल लिया जाये कि यह किसी को कुछ नही पता रहता! अभी बाराबंकी जिले में भिन्न का फार्मुला लगा कर प्रधानाचार्य जी को समय से पहले रिटायर कर दिया गया, और एक मुंशी को प्रधानाचार्य बना दिया गया, उधर प्रधानाचार्य जी कह रहें है कि हमारे साथ अन्याय किया गया है और मुंशी जी मैदान में ताल ठोंक रहे है! सभी छात्र कह रहें है कि प्रधानाचार्य जी कभी विद्यालय के फील्ड में दिखे नही, और ये जो मुंशी जी हैं अपने चहतों को एमडीएम देते है बाकी सभी को अनुपस्थित दिखा देते है। जहां एक नैया डूब गयी वहीं दूसरे की मजझधार में फंसी नजर आ रही है। अब देखना यह है कि चार गद्दी चौदह पावा वाले महन्त की महिमा यहां अब दिखेगी कि नही, क्योंकि इनके चेलों को हवन करने के अलवा मोहिनी मंत्र आता ही नही है।
चुनाव की मैराथन में दौडने के लिये एक लोगों ने पुरानी गाडी के छर्रों में ग्रिस लगा ली है और वाहन के चक्के में भी नये गजरे बांध दिये है, इस मैराथन को देखते हुये कुछ यह भी कह रहें है कि ‘‘बूढे भारत में भी आई फिर से नई जवानी थी’’ कुछ दर्शक यह भी कह रहें है कि चावल जितना पूराना होता है उतना ही अच्छा रहता है अब इन दोनों बातों का क्या परिणाम होगा यह तो वक्त ही जाने। एक न एक दिन सभी को पंच तत्व में मिलना है तो काहे का इतना शोर सराबा पंच तत्व के अनुयायी हर एक पौधे में दीमक की तरह लग चुके हैं जो बाहर से हरा भरा और सभी कोे हवा देने वाला लग रहा है वह पौध किस दशा में और किस दिशा में गिरेगा किसी को कुछ नही पता! उधर माली भी पौधों पर मिट्टी का तेल छिडके ने हिचकिचा रहे हैं! कहते हैं कि जब 70 वर्षों से दीमक लगी है इससे पहले किसी ने नही मारा तो हम क्यों पाप करें अब आगे जो होगा वह देखा जायेगा पानी देते रहो बस।
गुणा, भाग, वर्गमूल, पाई, बटा, भिन्न सभी प्रकार के फार्मूलों का इस्तेमाल करने पर अधिकांश परिणाम जातिगत की ओर इशारा कर रहें है, इस जातिगत में लोग असली जाति जो मानव की है! वह भूल गये हैं जब सभी मानव की जाति ही भूल गये तो मानव के अन्दर मानवता कहां बची ? वैसे कुछ भी हो इन दिनों गांव की हर गलियों व खेत की पगडंडियों तक सभी हितैशी सेवा की भावना लेकर घूम रहे चाहे जितनी गंभीर बीमारी से कोई ग्रसित क्यों न हो, जहां होमोपैथी, और एलोपैथी सब फेल हो गई हों वहां पर ऐसी सिमपैथी की दवा देते हैं मानों उनके तारणहार ही ने उनके यहां दस्तक दे दी हो।
राजकुमार तिवारी (राज)